tag:blogger.com,1999:blog-1061122214972196328.post5178162344785194362..comments2023-09-22T22:04:50.552+05:30Comments on उम्मीद है....: जसवंत को भुक्तभोगी का खतसुबोधhttp://www.blogger.com/profile/10810549312103326878noreply@blogger.comBlogger2125tag:blogger.com,1999:blog-1061122214972196328.post-77092593639358607502009-08-19T02:21:07.069+05:302009-08-19T02:21:07.069+05:30ये त्रासदी नहीं हकीकत है..कि हम जैसा दिखने के लिए ...ये त्रासदी नहीं हकीकत है..कि हम जैसा दिखने के लिए बने हैं या मजबूर हैं, उस दायरे से बाहर की दुनिया रंगीन नजर आती है....जो जिसके लिए बना है या बनाया गया है, उसे वो बोझ लगने लगता है... आडवाणी के बाद जसवंत सिंह कुछ इसी दायरे में आते है...केवल हिंदुत्व उन्हें बढ़ने नहीं दे रहा है...और धर्मनिरपेक्षता उन्हे रहने नहीं दे रही है...पर सवाल एकदम साफ है...उनसे जो इस मसले पर हाय तौबा मचाए हुए हैं...अगर देशभर के धर्मनिरपेक्ष लोग और पार्टियां ये समझती हैं, कि सांप्रदायिक होना गलत है...तो उन्हें जसवंत की किताब में लिखे विचारों से खुश होना चाहिए...लेकिन यहां माजरा कुछ और है...और वो है अपने इलाके में सेंधमारी रोकने की...किसी और का हिंदुत्व बीजेपी स्वीकार नहीं...किसी और का दलित प्रेम मायावती को स्वीकार नहीं......और किसी और की मुल्लापरस्ती मुलायम और कांग्रेस को पसंद नहीं...ठीक वैसे ही अगर बीजेपी के लोग धर्मनिरपेक्षता की बात करेंगे तो तथाकथित धर्मनिरपेक्ष लोग कैसे स्वीकार कर सकते हैं...झूठ ही सही, अगर कोई पार्टी अपनी चाल और चरित्र बदलकर धर्मनिरपेक्ष होना चाहती है, तो इसका हम सभी को स्वागत करना चाहिए...और उम्मीद करनी चाहिए कि बीजेपी के लोगों की साम्प्रदायिक सोच मरे न कि पार्टी ।अतुल रायhttps://www.blogger.com/profile/07036600721746088024noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1061122214972196328.post-34540266525583476652009-08-18T19:53:05.104+05:302009-08-18T19:53:05.104+05:30भाजपा के साथ संकट यह है कि वे विचार नहीं प्रचार के...भाजपा के साथ संकट यह है कि वे विचार नहीं प्रचार के लिए लिखते और बोलते हैं इसीलिए कोई बुद्धिजीवी उनकी और थूकता तक नहीं है किताब का समय अपने आप में एक टिप्पणी है असल में नेहरू उनकी राजनीति में सबसे बड़े बाधक हैं इसलिए जिन्ना के बहाने नेहरू के राजनितिक कद को नोंचने कि असफल और हास्यास्पद कोशिश में अपने ही घर में जूतामपैज़ार करने पर उतर आये हैं . ईसाइयों के बहाने वे सोनिया गाँधी पर वार करते हैं पर अपनी किताब के विमोचन के अवसर पर मनेका गाँधी और वरुण गाँधी को नहीं बुलाते और न ही कोई उनके विचार ही जानने कि कोशिश करता हैवीरेन्द्र जैनhttps://www.blogger.com/profile/03394460991280336978noreply@blogger.com