रविवार, 23 दिसंबर 2007

बकबक का मतलब

बहुत दिनों बाद लिख रहा हूं...ये दलील देने के लिए नहीं कि समय नहीं था...ये कहना सरासर झूठ होगा...ये भी नहीं कहूंगा कि व्यस्त था...ये खुद के काम के साथ नाइंसाफी होगी...ये जरुर कहूंगा कि इच्छाशक्ति की कहीं ना कहीं कमी थी...और आज जब लिखने बैठा तो लगा कि पहले प्रयश्चित कर लिया जाए....दरअसल कहने को काफी कुछ था....खुब कहा भी...लोगों से खुब बतियाया भी...लेकिन बोले शब्द बांधे नहीं जाते...वो तो हवा में घुल कर कुछ देर बाद गुम हो जाते हैं...इसलिए...लगा बोलो कम लिखो ज्यादा...शब्द ब्लॉग पर रोज रोज विस्तार लेकर कम से कम परिपक्व तो हो ही जाएंगें...दरअसल बोलने को हर किसी के पास कुछ ना कुछ है...सब बोल रहे हैं...कोई कमाने के लिए तो कोई बरगलाने के लिए...इन सबके बीच में खुद का बोलना पता नहीं चलता...खुद से शायद ही हम बोल पाते हों...क्योंकि दूसरे मौका नहीं देते...सबके पास अपने अपने लॉजिक हैं...हर कोई खुद को सही साबित करने को बोल रहा है...लेकिन सवाल ये है कि इतनी बातों में सुन कौन किसको रहा है...दरअसल जो बोल रहे हैं वो सुनाना चाहते हैं और जो सुन है वो समझना नहीं चाहते...शायद तभी बाबाओं के प्रवचन की गूंज भक्तों के कानों में तभी तक रहती है जबतक बाबा सामने बने रहते हैं...ज्यों बाबा गए उनकी बातें गईं....इतनी बकबक का मतलब था कि बोलो कम लिखो ज्यादा...कम से कम पढ़ने पर खुद से थोड़ी बातें तो हो जाएंगीं....

1 टिप्पणी:

Reetesh Gupta ने कहा…

बढ़िया है ...यूँ ही लिखते रहिये..