रविवार, 1 जून 2008

सरकारी स्कूल की दीवारें

सरकारी स्कूलों की
दीवारें अक्सर
ज्यादा उंची नहीं होती..
बड़ा आसान होता है
उन्हें यूं ही फांदा जाना..
मुझे अपने
स्कूल की दीवार कभी ज्यादा
ऊंची नहीं लगी
सरकारी तंत्र की हवा
आसानी से यहां आती जाती रही..
जाति..धर्म का एहसास
मास्टरों के दिमाग से होता हुआ
अक्सर मेरे अंदर
घुसपैठ करता रहा...
भ्रष्टाचार को
गुरु शिष्य परम्परा
के लबादे में..
कई बार सरकारी स्कूल की दीवारें
फांद कर आते देखा..
मास्टरो की डांट
अक्सर
स्कूल की दीवारें
फांद कर उनके घरों में
ट्यूशन पढ़ने के लिए
मजबूर करती रही..
आज भी जब अपने स्कूल
की ओर से गुजरता हूं
तो अपने भीतर की
एक छोटी दीवार का
एहसास हो जाता है...
( सरकारी स्कूल का वो सच जो मैने महसूस किया..ये मेरे निजी विचार हैं..सरकारी स्कूल को लेकर सहानुभूति मेरी भी है..लेकिन जो लिखा मेरा अपना अनुभव है..)

1 टिप्पणी:

Ritu Raj Gupta ने कहा…

सुबोध जी,
सरकारी स्कूलों की हालत आपने जो बयां की है ... उनकी हालत कही ज्यादा खस्ताहाल है ... सुझाव है कि रवीश जी के ब्लॉग का अवलोकन जरुर करें ... दरअसल यहीं वो स्कूल हैं जहां से भ्रष्टाचार और सामाजिक कुरीतियों की शुरुआत होती है ... इसलिए यह स्कूल विद्यार्जन के लिए ही नहीं हैं बल्कि इन सभी बुराइयों के बीज भी यहीं बच्चों के दिलों दिमाग में बोये जाते हैं ... काश के शिक्षक भी इन ब्लाग्स को पढ़े और कुछ विचार करें कि वो देश को किस दिशा में ले जा रहे हैं ... क्योंकि देश में सिर्फ पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम ही शायद समझ पाये हैं कि देश का भविष्य सुधारना है तो बच्चों को तराशना होगा ...