बहस क्या हैं...
केवल विचार
या फिर दिमाग को चीर देने वाली आवाज...
बहस क्या हैं...
बेबुनियाद सी लगती चीख...
या फिर बुनियाद को खडा करने का जज्बा....
बहस क्या है...
शोर
या फिर गलत के खिलाफ शोर पैदा करने का हौसला
बहस क्या है
मैं
या फिर मैं से हम होने का एहसास
( ये कविता शौर्य की थीम पर है, लेकिन यकीन मानिए ओरिजनल है)
1 टिप्पणी:
बहस को बड़ी खूबसूरती से परिभाषित किया आपने...मगर अफ़सोस की इन दिनों बहस मैं से हम नहीं हम को भी मैं पर लेकर आ रहा है..
सुन्दर अभिव्यिक्ति ...............
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