राम कब तक नैया पार लगाते। बीजेपी की राजनीति राम भरोसे कब तक चलती। जब तक चली तब तक बीजेपी ने खूब चलाई। लेकिन जब मुद्दा पुराना हुआ तो ओवरहालिंग भी काम नहीं आई। सत्ता आई और चली भी गई। अब पार्टी की कलह सामने है। जसवंत पार्टी से बाहर हैं और अरुण शौरी बगावत का बिगुल फूंक चुके हैं। कभी यूपी की महोना सीट से विधायकी का इलेक्शन हारने वाले राजनाथ अनुशासन के नाम पर मनमर्जी करने में जुटे हैं। कोई ये जानने को तैयार नहीं कि पार्टी की इस दुर्दशा के लिए आखिर जिम्मेदार कौन है। दरअसल बीजेपी कन्फ्यूजन का शिकार है। ये कन्फ्यूजन चाल चरित्र और चेहरे का है। बीजेपी किस राह चले ये सवाल पार्टी के सामने गुत्थी बनकर खड़ा है। पार्टी की कट्टर छवि गठबंधन के लिए मुफीद नहीं है और उदार छवि पार्टी को आगे नहीं बढ़ा पा रही। कुछ कुछ यही भ्रम चेहरे को लेकर है। नए चेहरों के तौर पर बीजेपी में नरेन्द्र मोदी और सुषमा स्वराज के चेहरे नजर आते हैं। लेकिन आडवाणी की जिद के चेहरे के पीछे ये चेहरे गायब दिखते हैं। दरअसल आरएसएस ने बीजेपी को हमेशा अपनी संपत्ति की तरह समझा और इस्तेमाल किया। उसे अटल के उदार चेहरे से हमेशा एतराज रहा। राम के नाम पर बीजेपी की राजनीति तो चमक गई। लेकिन ये चमक वक्त के साथ फीकी पड़नी थी, सो पड़ी। बीजेपी राम की राजनीति का विकल्प नहीं तलाश पाई। दरअसल राम मंदिर को बीजेपी ने रामराज्य से जोड़कर मुद्दे को जरुरत से ज्यादा भावनात्मक बना दिया। राम को बीजेपी ने मसले के फ्रेम में तो उतार लिया लेकिन उसे अपनी राजनीति का आदर्श नहीं बना पाई। इसका साइड इफेक्ट ये हुआ कि राम फसाद का मसला बन गए और बीजेपी की राजनीति नफरत की राजनीति। फिलहाल तो अब बीजेपी का कन्फ्यूजन चरम पर है। अरुण शौरी शुरुआत हैं...पिक्चर अभी बाकी है...।
4 टिप्पणियां:
Subodh,
We nice analysis, must appreciate you.
Ram Ram.
वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाएं, राष्ट्र को उन्नति पथ पर ले जाएं।
सुबोध जी..बहुत अच्छा लगा...और आप सही भी है...काफी हद तक....सुधीर कुलकर्णी और अरुण शौरी के सहयोग के बाद अब जसवंत सिंह को एक और सहयोगी मिल गया है.... जो देश के विभाजन के लिए जिन्ना को जिम्मेदार नहीं मानता....आरएसएस के पूर्व अध्यक्ष के. सी सुदर्शन ने बंटवारे के लिए जिन्ना को नहीं बल्कि महात्मा गांधी को दोषी बताया है... सुदर्शन ने कहा कि "जिन्ना राष्ट्र के प्रति समर्पित थे,अगर महात्मा गांधी चाहते, तो देश का विभाजन रोका जा सकता था"। इसके साथ ही, उन्होंने पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना पर संघ परिवार में चल रही बहस को और गर्म करते हुए कहा कि वह राष्ट्र (अविभाजित भारत) के लिए पूरी तरह समर्पित थे। हालांकि उन्होंने इस मसले को लेकर जसवंत सिंह के भाजपा से निष्कासन पर टिप्पणी से साफ इंकार कर दिया। उनका कहना था कि भाजपा का आंतरिक मामला है...लेकिन ये भी ,सच है...कि अब ये मामला आतरिक नहीं सार्वजनिक हो गया है...जब घर के सदस्य बाहर आकर बयान बाजी करने लगे..समाज के सामने न्याय की गुहार लगाने लगे..तो ये मामला आतंरिक तो नहीं रहा...अब भाजपा लाख दलीले पेश करें...ये तो सच है...कि एक एक करके जैसे भाजपा के सदस्य अलग हो रहे है...और अपनी अपनी दलील पेश कर रहे है...जगजाहिर है..कि पानी सिर से ऊपर चला गया है...और अब कोई इसे बर्दाश्त नहीं करना चाहता है....फिर चाहे कीमत पार्टी से निष्काशन ही क्यो न हों..
कहीं सुना पढा था ये पार्टी अनुशासन वाली है?
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