सोमवार, 2 जुलाई 2007

मां

मां का चेहरा
बार बार स्मृतियों मे उभरता है
जब कभी
तनाव से सिर दुखता है
किसी की बात बुरी लगती है
या उम्मीद धुंधली होती है
वे याद आती हैंे
सिर्फ वही याद आती हैं
मेरी मां हजारों मंाओं की तरह
गांव की एक
साधारण लड़की रही होगीं
बाद में उम्मीदों के बोझ
और समझौतों से दबी मां
हमेशा परिवार के लिए
खुद को भूल गयी होगीं
(दीपक की कविताएं)

रविवार, 24 जून 2007

खबर क्या है

मुझे लगता है कि समाचारों को लेकर टीवी चैनल्स का नजरिया काफी संकुचित हुआ है। हमारे पास खबरें हैं लेकिन उसे लेकर हमारी कोई सोच नहीं रह गयी है । धरने और आम आदमी खबरों से गायब होता जा रहा है। शायद वो बाजार का हिस्सा नहीं है इसीलिये