मैने निराशा में जीना सीखा है,निराशा में भी कर्तव्यपालन सीखा है,मैं भाग्य से बंधा हुआ नहीं हूं...राममनोहर लोहिया
सोमवार, 16 जून 2008
माफ़ करना बाबूजी...पार्ट १
उस खिड़की से... दूर दूर तक पेड नज़र आते थे... लगता था कि पूरे शहर को पेड़ से घेर दिया गया हो... शाम को सूरज लाल होकर गुम होने तक उस खिड़की से झांकता रहता.. शाम जब रात की करवट लेती तो पूरा शहर रोशनी की चादर तान लेता.. अक्सर ऐसे वक्त उपन्यास के कुछ पन्ने खुद ब खुद पलट जाते... और निर्मल वर्मा का एकाकीपन मन के गहरे तक उतर जाता... चाय की मिठास में वक्त घुलते घुलते नींद के आगोश में जाने को बेकरार हो उठता....लेकिन इस बीच कमबख्त नीद कब छत पर टहलने चली जाती पता नहीं चलता... चांद की रोशनी में यादें बार बार बचपन के करवट हो लेतीं...और जब अपने याद आते तो मन बेचैन हो जाता... इस बेचैनी के बीच रात और चाय का एक अजीब सा रिश्ता बन गया था... रातें उसके लिए खुली किताब की तरह थी.. जिसपर वो बार बार कुछ लिखकर मिटाता रहता... दोस्तों के फोन भी अब ज्यादा नहीं आते थे... अब वो अक्सर उपन्यासों से बात करता.. कविताओं से बोलता.. और चाय के साथ गजले सुनकर रात काट देता.. सुबह से उसे एक अनजाना सा डर लगने लगा था... सुबह का मतलब था नौकरी की तलाश में दर दर की ठोकर...ऐसा करते करते चार महिने और चार दिन गुजर चुके थे...पुरानी नौकरी से कमाया पैसा अब खत्म होने को था...दिल्ली में रहना अब मुश्किल था.. कभी कभी तो सब्र जबाब दे जाता... लेकिन बीमार रिटायर पिता की चिंता उसे दिल्ली की दिक्कत के बीच रोक देती... जब तक पैसे कमाए तब तक ज्यादात्तर पैसा बाबूजी को मनीआर्डर कर दिया...लेकिन दो बार से मनीआर्डर नहीं भेजा...हां कुछ बहाने और उम्मीदें जरुर अपने बूढे बाबूजी तक पहुंचा दी.. बाबूजी भी अब अक्सर बीमार रहने लगे थे...मोतियाबिंद के ऑपरेशन के बाद भी मां की आंखों का धुंधलापन गया नहीं था.. भला हो उस छोटकी का जिसने घर संभाल रखा था.. .कहने को वो घर पर सबसे छोटी थी... लेकिन भाई का सारा फर्ज अपने छोटे कंधे पर उठा रखा था... इस साल गांव के सरकारी स्कूल में नवें में दाखिला लिया था... पिछली बार बाबूजी के सारे पैसे छोटकी का दाखिला करने में खत्म हो गए... आगे की उम्मीद बेटे के मनीआर्डर पर टिक गई थी.. लेकिन वो बेटा....क्या बताता वो बाबूजी से...कि वो दिल्ली में आजकल नौकरी के लिए धक्के खा रहा है... क्या कहता बाबू जी से कि देखिए बाबूजी भ्रष्ट व्यवस्था का हिस्सा ना बनकर मैने गलती की.. या फिर बाबू जी समाज बदलने निकला आपका लड़का धीरे धीरे खुद बदल रहा है... बाबू जी पुराने कम्यूनिस्ट थे... व्यवस्था के भ्रष्ट तंत्र से उन्हें चिढ़ थी..जब तक हाथ पैर चले लेनिन और मार्क्स को समझने और समझाने की कोशिश करते रहे...लेकिन बूढ़ापे के आगे उनका कम्यूनिज्म हार गया... वो सपना टूट गया...जो जोशीले भाषणों में बार बार दिखता था...गांव के बेकार लोग जिन्हें बाबू जी समाज का कोढ़ कहते थे शहर जाकर खूब पैसे जुटा लाए थे... गांव के खेतों मे शाखाएं लगनी शुरु हो गईं थीं.. रहमान और शकील चाचा से गांव के लोगों ने दूरी बना ली... बेबस आंखो से बाबू जी कम्यूनिज्म के गांव में पहुंचने का इंतजार करते रहे... जब बाबूजी का शरीर साथ देने से इंकार करने लगा तो ...अपने सपनों का बोझ उन्होने बेटे का कंधे पर रख दिया... बेटा दिल्ली में था...और एक अखबार में कम्यूनिस्ट पार्टी कवर करता था...बाबू जी इसी बात से खुश थे... लेकिन उन्हें क्या पता था कि अखबार के दफ्तरों में साम्यवाद नहीं चलता.. यहां बॉसिजिज्म का सिक्का बोलता है... जिसके लिए सब मशीन हैं... उनका बेटा भी...(आगे जारी)
सोमवार, 2 जून 2008
गुलज़ार के बहाने ग़ालिब..एक

तकरीबन दो दशक पहले गुलज़ार ने मूवी हाउस के बैनर तले सीरियल मिर्ज़ा गा़लिब बनाया था...नसिरुद्ददीन शाह ने मिर्ज़ा गा़लिब का किरदार अदा किया था...और रिसर्च का काम क़ैफ़ी आज़मी और गुलज़ार ने मिलकर किया था...संगीत जगजीत सिंह का था जो आज भी गुनगुनाया जाता है..कुछ दिन पहले मिर्ज़ा ग़ालिब फिर से देखने का मौका लगा...सीरियल तो खूबसूरत है कि उसकी स्क्रिप्ट संजोकर रखने वाली है..
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( दीवाली के मौके पर चौसर खेलते हुए )
मिर्ज़ा तोफ्ता ...अरे वाह उस्ताद दीवाली पर तो आप हर साल जीतते हैं...
मिर्ज़ा गा़लिब ...जीतता तो मैं ईद पर भी हूं..मिर्जा तोफ्ता ..बस ईद पर रस्म नहीं है जुआं खेलने की
अनजान शख्स...आप भी कहां रस्मों रिवाज मानते हैं मिर्जा
मिर्ज़ा गा़लिब... ऐसा ना कहो भाई ..मैं हर रस्मों रिवाज को मानता हूं..इसीलिए एक का कायल नहीं हूं....
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( गालिब के बेटे की मौत के बाद )
मुफ्ती...सब्र करो मिर्ज़ा...उसकी मर्जी में क्या छिपा है क्या पोशिदा है कोई नहीं जानता ...उसके राज निराले हैं
मिर्ज़ा गा़लिब... क्या छुपा है मुफ्ती साहब..क्या पोशिदा है..मेरा एक बेटा हुआ था... वो मर गया.. और वो दफ्न है अपनी कब्र में.. इतनी छटंकी सी जान... मनों मिट्टी पड़ी है उस पे कि कम्बख्त करवट भी ना ले सके.. . इसमें राज की कौन सी बात है... जना था उमराव बेगम ने और मारा उसे अल्लाह ने.. और कौन है मारने वाला... उसके बगैर हक है किसी को
मुफ्ती...आप ही ने कहा था जान दी..दी हुई उसी की थी.. हक तो यूं है कि हक अदा ना हुआ... ...
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( बेटे की कब्र के पास)
मिर्ज़ा गा़लिब ..जाते हुए कहते हो कयामत को मिलेगें...क्या खूब..कमायत का है गोया कोई दिन और..
लाला ( मिर्ज़ा गा़लिब के दोस्त ).. असद कहां खो गए हो इस वक्त
मिर्ज़ा गा़लिब... सोच रहा हूं कि दरगाह तक हो आऊं.. एक चादर चढ़ानी बाकी है...एक चढ़ाई थी जब मन्नत मांगने गया था बच्चे की...एक शुक्राने की चढ़ाई थी...अब एक माज़रत की चढ़ा आऊं...माफी मांग आऊं ख्वामोखां तकलीफ दी आपको....
लाला...जी कड़वा मत करो असद
मिर्ज़ा गा़लिब ...मै नहीं करता लाला...लेकिन उस औरत का क्या करुं.. जो मरी जा रही बच्चे जनते जनते...अपनी गोद भरने के लिए...उसकी गोद तो मुर्दों से भरी जा रही है...ये पांचवा बच्चा था लाला....
लाला..चलो घर चलो...
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( दीवाली के मौके पर चौसर खेलते हुए )
मिर्ज़ा तोफ्ता ...अरे वाह उस्ताद दीवाली पर तो आप हर साल जीतते हैं...
मिर्ज़ा गा़लिब ...जीतता तो मैं ईद पर भी हूं..मिर्जा तोफ्ता ..बस ईद पर रस्म नहीं है जुआं खेलने की
अनजान शख्स...आप भी कहां रस्मों रिवाज मानते हैं मिर्जा
मिर्ज़ा गा़लिब... ऐसा ना कहो भाई ..मैं हर रस्मों रिवाज को मानता हूं..इसीलिए एक का कायल नहीं हूं....
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( गालिब के बेटे की मौत के बाद )
मुफ्ती...सब्र करो मिर्ज़ा...उसकी मर्जी में क्या छिपा है क्या पोशिदा है कोई नहीं जानता ...उसके राज निराले हैं
मिर्ज़ा गा़लिब... क्या छुपा है मुफ्ती साहब..क्या पोशिदा है..मेरा एक बेटा हुआ था... वो मर गया.. और वो दफ्न है अपनी कब्र में.. इतनी छटंकी सी जान... मनों मिट्टी पड़ी है उस पे कि कम्बख्त करवट भी ना ले सके.. . इसमें राज की कौन सी बात है... जना था उमराव बेगम ने और मारा उसे अल्लाह ने.. और कौन है मारने वाला... उसके बगैर हक है किसी को
मुफ्ती...आप ही ने कहा था जान दी..दी हुई उसी की थी.. हक तो यूं है कि हक अदा ना हुआ... ...
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( बेटे की कब्र के पास)
मिर्ज़ा गा़लिब ..जाते हुए कहते हो कयामत को मिलेगें...क्या खूब..कमायत का है गोया कोई दिन और..
लाला ( मिर्ज़ा गा़लिब के दोस्त ).. असद कहां खो गए हो इस वक्त
मिर्ज़ा गा़लिब... सोच रहा हूं कि दरगाह तक हो आऊं.. एक चादर चढ़ानी बाकी है...एक चढ़ाई थी जब मन्नत मांगने गया था बच्चे की...एक शुक्राने की चढ़ाई थी...अब एक माज़रत की चढ़ा आऊं...माफी मांग आऊं ख्वामोखां तकलीफ दी आपको....
लाला...जी कड़वा मत करो असद
मिर्ज़ा गा़लिब ...मै नहीं करता लाला...लेकिन उस औरत का क्या करुं.. जो मरी जा रही बच्चे जनते जनते...अपनी गोद भरने के लिए...उसकी गोद तो मुर्दों से भरी जा रही है...ये पांचवा बच्चा था लाला....
लाला..चलो घर चलो...
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रविवार, 1 जून 2008
सरकारी स्कूल की दीवारें
सरकारी स्कूलों की
दीवारें अक्सर
ज्यादा उंची नहीं होती..
बड़ा आसान होता है
उन्हें यूं ही फांदा जाना..
मुझे अपने
स्कूल की दीवार कभी ज्यादा
ऊंची नहीं लगी
सरकारी तंत्र की हवा
आसानी से यहां आती जाती रही..
जाति..धर्म का एहसास
मास्टरों के दिमाग से होता हुआ
अक्सर मेरे अंदर
घुसपैठ करता रहा...
भ्रष्टाचार को
गुरु शिष्य परम्परा
के लबादे में..
कई बार सरकारी स्कूल की दीवारें
फांद कर आते देखा..
मास्टरो की डांट
अक्सर
स्कूल की दीवारें
फांद कर उनके घरों में
ट्यूशन पढ़ने के लिए
मजबूर करती रही..
आज भी जब अपने स्कूल
की ओर से गुजरता हूं
तो अपने भीतर की
एक छोटी दीवार का
एहसास हो जाता है...
( सरकारी स्कूल का वो सच जो मैने महसूस किया..ये मेरे निजी विचार हैं..सरकारी स्कूल को लेकर सहानुभूति मेरी भी है..लेकिन जो लिखा मेरा अपना अनुभव है..)
दीवारें अक्सर
ज्यादा उंची नहीं होती..
बड़ा आसान होता है
उन्हें यूं ही फांदा जाना..
मुझे अपने
स्कूल की दीवार कभी ज्यादा
ऊंची नहीं लगी
सरकारी तंत्र की हवा
आसानी से यहां आती जाती रही..
जाति..धर्म का एहसास
मास्टरों के दिमाग से होता हुआ
अक्सर मेरे अंदर
घुसपैठ करता रहा...
भ्रष्टाचार को
गुरु शिष्य परम्परा
के लबादे में..
कई बार सरकारी स्कूल की दीवारें
फांद कर आते देखा..
मास्टरो की डांट
अक्सर
स्कूल की दीवारें
फांद कर उनके घरों में
ट्यूशन पढ़ने के लिए
मजबूर करती रही..
आज भी जब अपने स्कूल
की ओर से गुजरता हूं
तो अपने भीतर की
एक छोटी दीवार का
एहसास हो जाता है...
( सरकारी स्कूल का वो सच जो मैने महसूस किया..ये मेरे निजी विचार हैं..सरकारी स्कूल को लेकर सहानुभूति मेरी भी है..लेकिन जो लिखा मेरा अपना अनुभव है..)
बुधवार, 28 मई 2008
वो बारह घंटे...
वो घंटे मुझसे हिसाब मांगते हैं
वो चाहते हैं
अपने हिस्से की खिलखिलाहट...
वो मांगते हैं
अपने सपनों का हिस्सा...
वो देखना चाहते हैं
दोस्तों के सपनों में सपना...
रास्तों पर नंगे पांव दौड़ना चाहते है
वो घंटे अपना हिसाब मांगते हैं...
वो नहीं जानते
तिगड़म का जाल...
वो नहीं समझते
अपनें दिखते लोगों की चाल...
बस पेड़ की छांव चाहते हैं
वो घंटे मुझसे हिसाब मांगते हैं...
सपनों के धुंधलके में उम्मीद चाहते हैं...
अपने शहर की तस्वीर चाहते हैं...
जवानी में फिर से बचपन चाहते हैं..
वो घंटे मुझसे हिसाब मांगते हैं
मां के हाथों की मार..
पिता की फटकार...
भाई का दुलार चाहते हैं
वो घंटे मुझसे हिसाब मांगते हैं
तपती दोपहर में बादल की छांव चाहते हैं
बरसात में भीगकर कंपकपना चाहते हैं
शैतानियां करके छुपाना चाहते हैं
वो घंटे मुझसे हिसाब मांगते हैं
चाय की चुस्कियो के बीच
ढेर सी काहानियां चाहते हैं
बहुत लिखकर कुछ कुछ मिटाना चाहते हैं
बच्चों की तूतलाहट के बीच मचलना चाहते हैं..
वो घंटे मुझसे हिसाब मांगते है.....
( दरअसल ये वो घंटे हैं जो पता नहीं कैसे कट जाते हैं...ना तो खुशी देते हैं...हां थोड़ा सा गम देते हैं...अपनों से दूर होने का एहसास देते हैं...मजबूरी के लाबादे में...मशहूरी के मुगालते में...ठहरे ठहरे से लगते हैं...वो दिन के बारह घंटे...दफ्तर की उमस के बीच...बीत जाते हैं पर होने का कभी भी एहसास नहीं देते...बस दूर से दूर लगते हैं...खुद से अनजान लगते हैं...वो बारह घंटे..कविता की शक्ल में बह जाना चाहते हैं...शब्दों में ठहर जाना चाहते .दिन के वो बारह घंटे जो बीत जाते हैं पर पता नहीं चलते )
Subodh 9313254747
वो चाहते हैं
अपने हिस्से की खिलखिलाहट...
वो मांगते हैं
अपने सपनों का हिस्सा...
वो देखना चाहते हैं
दोस्तों के सपनों में सपना...
रास्तों पर नंगे पांव दौड़ना चाहते है
वो घंटे अपना हिसाब मांगते हैं...
वो नहीं जानते
तिगड़म का जाल...
वो नहीं समझते
अपनें दिखते लोगों की चाल...
बस पेड़ की छांव चाहते हैं
वो घंटे मुझसे हिसाब मांगते हैं...
सपनों के धुंधलके में उम्मीद चाहते हैं...
अपने शहर की तस्वीर चाहते हैं...
जवानी में फिर से बचपन चाहते हैं..
वो घंटे मुझसे हिसाब मांगते हैं
मां के हाथों की मार..
पिता की फटकार...
भाई का दुलार चाहते हैं
वो घंटे मुझसे हिसाब मांगते हैं
तपती दोपहर में बादल की छांव चाहते हैं
बरसात में भीगकर कंपकपना चाहते हैं
शैतानियां करके छुपाना चाहते हैं
वो घंटे मुझसे हिसाब मांगते हैं
चाय की चुस्कियो के बीच
ढेर सी काहानियां चाहते हैं
बहुत लिखकर कुछ कुछ मिटाना चाहते हैं
बच्चों की तूतलाहट के बीच मचलना चाहते हैं..
वो घंटे मुझसे हिसाब मांगते है.....
( दरअसल ये वो घंटे हैं जो पता नहीं कैसे कट जाते हैं...ना तो खुशी देते हैं...हां थोड़ा सा गम देते हैं...अपनों से दूर होने का एहसास देते हैं...मजबूरी के लाबादे में...मशहूरी के मुगालते में...ठहरे ठहरे से लगते हैं...वो दिन के बारह घंटे...दफ्तर की उमस के बीच...बीत जाते हैं पर होने का कभी भी एहसास नहीं देते...बस दूर से दूर लगते हैं...खुद से अनजान लगते हैं...वो बारह घंटे..कविता की शक्ल में बह जाना चाहते हैं...शब्दों में ठहर जाना चाहते .दिन के वो बारह घंटे जो बीत जाते हैं पर पता नहीं चलते )
Subodh 9313254747
सोमवार, 26 मई 2008
हिन्दी ब्लॉग की हत्या पर दो मिनट का मौन
यशवंत जी ने अपने ब्लॉग पर जिस भाषा का इस्तेमाल किया...वो भले उनकी अभिव्यक्ति का तरीका हो...लेकिन उससे हिन्दी ब्लॉग को गहरा धक्का लगा है...यशवंत जी से मै कभी नहीं मिला...ना तो अविनाश जी से मेरा कोई परिचय है...दोनो को मैने ब्लॉग के जरिए जाना..पढ़ा और जी भर के कमेंन्ट किए...लेकिन हाल में यशवंत जी ने जिन अपशब्दों के साथ अपनी भड़ास निकाली..उससे हिन्दी ब्लॉग की दुनिया को काफी नुकसान पहुंचा है...इस ब्लॉग ने साबित कर दिया कि...केवल चार पांच बढ़िया लाइने लिखने से आप महान नहीं बन जाते...गुस्से में आप कितना विवेक से काम लेते हैं... ये बहुत कुछ आपके व्यक्तित्व पर निर्भर करता है.. .यशवंत जी ने साबित कर दिया की ब्लॉग जगत की सेवा की उनकी कोशिश ईमानदार तो कतई नहीं है...गुस्से में अपशब्दों का इस्तेमाल तो अनपढ़ भी करता है...लेकिन थोडा पढ़े लिखे लोग ऐसा करने लगते हैं तो अफसोस होता है...मैं यशवंत जी इतना ही कह सकता हूं कि अपने लिखे को दोबारा पढ़े...सोचें...उन्हे इस वक्त सोच समझ कर लिखने की जरुरत है... माना कि ब्लॉग उनका है...अभिव्यक्ति की आजादी पर उनका भी हक है...लेकिन सार्वजनिक मंचो से गाली गलौज और रंगभेदी टिप्पणी करना किसी को भी शोभा नहीं देता..फिलहात तो हिन्दी ब्लॉग की हत्या की उनकी इस कोशिश पर हम सब दो मिनट का मौन रख सकते हैं...
शनिवार, 24 मई 2008
अरे ट्राई नहीं किया क्या...
(खुद को समाचार चैनल बताने वालों सुनो...सारा खेल टीआरपी का है...और टीआरपी बटोरना कोई बड़ा काम नहीं...बस अपना ज़मीर बेचो...और उतर जाओ बजार में...हां भूले से न्यूज की बात मत करो...फिजूल की चीजों पर खेलना सीखो...सबसे खेलो....अपने अंदर के बचे खुचे पत्रकार से...लोगों की भावना से...सच्चाई दिखाने के वायदे से..और कभी कभी खुद से भी...देखना टीआरपी छप्पड़ फाड़ कर आएगी...जहां तक इलेक्ट्रानिक मीडिया के पत्रकारो का सवाल है उनकी योग्यता को लेकर मेरे पास एक मेल http://www.hindimedia.in/ से आया है जो आपके पेश ए खिदमत है.)
टीवी न्यूज चैनल के लिए तत्काल चाहिए
रमता जोगी
Thursday, 22 May 2008
शीघ्र ही शुरु होने जा रहे हिन्दी के एक न्यूज़ चैनल के लिए देश के गाँव-गाँव से लेकर शहरों के गली मोहल्ले तक टीवी रिपोर्टर यानी टीवी पर खबरें देने वाले संवाददाताओं की आवश्यकता है, जो अपने शहर या मोहल्ले में होने वाली घटनाओं की रिपोर्टिंग कर सके। आवेदक के लिए कोई शैक्षणिक योग्यता निर्धारित नहीं है, कोई भी थोड़ा पढा-लिखा आवेदन दे सकता है। लेकिन आवेदक को शहर के अपारधियों से लेकर पुलिस वालों से अच्छे संबंध होना चाहिए, ताकि उसे अपराध जगत की खबरें आसानी से मिल सके। अगर आवेदक खुद ब्लैकमैलिंग, चोरी, लूट बलात्कार जैसे अपराध में जेल जा चुका है या किसी दुश्मन द्वारा फँसाया जा चुका है तो उसके आवेदन पर तत्काल विचार किया जाएगा। ऐसे आवेदक को अपने ऊपर चल रहे मुकदमों, पुलिस में अपने खिलाफ दर्ज रिपोर्ट, अखबार में अपने खिलाफ छपी खबरों की कतरनें आदि प्रमाण के रूप में भेजना होगी। अपने आवेदन के साथ चैनल को हत्या, बलात्कार, लूट, धोखाधड़ी जैसे अपराध करने वालों की सूची, उनके द्वारा किए गए सफल अपराधों की सूची और वे किस अपराध में पारंगत हैं इसका पूरा व्यौरा भेजना होगा ताकि इस तरह के अपराधों पर चैनल उनसे तत्काल संपर्क कर उनसे इस तरह के अपराध पर विस्तार में चर्चा कर उनकी विशेषज्ञता का फायदा ले सके। आवेदक को चाहिए कि वो अपने शहर या गाँव में होने वाली हर छोटी बड़ी घटना पर नजर ही नहीं रखें बल्कि किसी भी घटना के होने के तत्काल बाद बढ़ा-चढ़ाकर उसकी खबर दें। किसी खबर को जितनी जल्दी भेजा जाएगा, उस संवाददाता को उतना ही योग्य माना जाएगा। शहर में होने वाली चोरियाँ, हत्या, बलात्कार, अपहरण, अवैध शराब के अड्डे, किसी भी सांस्कृतिक कार्यक्रम या मेले में होने वाले फूहड़ नाच-गाने जैसी खबरें प्रमुखता से चैनल पर प्रसारित की जाएगी। अगर कोई रिपोर्टर साहित्यिक, सांस्कृतिक या धार्मिक रुचियों की खबरें भेजेगा तो ऐसी खबरें कतई स्वीकार नहीं की जाएगी। किसी साहित्यिक आयोजन की बजाय आपके शहर में कोई फिल्मी या टीवी अभिनेत्री किसी ब्यूटी पॉर्लर का उद्घाटन करे, किसी गली मोहल्ले में कहीं कोई फैशन शो हो रहा हो, ऐसी खबरों को प्रमुखता दें। टीवी चैनलों पर सास बहू के नकली झगड़ों को देखकर लोग अब बोर हो चुके हैं। हमारे द्वारा किए गए शोध से पता चला है कि लोग अब असली झगड़ें देखना चाहते हैं। इसके लिए आप अपने गली मोहल्ले से लेकर आसपास के मोहल्लों में ऐसे परिवारों की सूची बनालें जहाँ आए दिन सास-बहू, देवरानी-जेठानी ननंद-भोजाई के बीच लड़ाई झगड़े होते हों। इन झगडों को आप सीधे चैनल पर भी प्रसारित कर सकते हैं और अगर आप चाहें तो इन सास बहू को या ननंद-भोजाई या देवरानी-जेठानी को अपने स्टुडिओ में भी ला सकते हैं। हम इनसे सीधी चर्चा कर इसका सीधा प्रसारण करेंगे ताकि लोग समझ सकें कि घरों में आखिर ये झगड़ें क्यों होते हैं और इनको कैसे सुलझाया जा सकता है। इनसे बात करने के साथ ही हम देश के जाने माने मनोवैज्ञानिकों से, देश की जानी-मानी सासुओं और बहुओं से भी बात करेंगे। लेकिन यह ध्यान रहे कि आप हर बार अलग अलग मोहल्ले की सास-बहुओं के झगड़ें कवर करें। एक ही मोहल्ले की एक घटना का प्रसारण एक बार ही किया जाएगा। एक ही मोहल्ले से दूसरे परिवार को मौका नहीं दिया जाएगा।
अगर आप सास बहुओं के झगड़ों को कवर नहीं कर सकते हैं तो गली मोहल्ले में केल खेल में लड़ने वाले बच्चों के झगडो़ से फभी अपनी रिपोर्टिंग की शुरुआत कर सकते हैं। बच्चों के लड़ाई-झगड़ों में बड़े भी कूद पड़ते हैं और कई बार बच्चों की लडा़ई महाभारत की लडा़ई को भी मात कर देती है। आप चाहें तो गली मोहल्ले में खेलेन वाले बच्चों को उकसाकर भी उनको आपस में लड़ा सकते हैं और टीवी पर लाईव दिखा सकते हैं। टीवी पर बच्चों की लडा़ई दिखाने के बाद उनके माँ-बाप, मोहल्ले वाले और फिर उनकी जाति और समुदाय वाले भी बीच में कूद जाएंगे और इस तरह हम अपने चैनल पर बार बार यह चेतावनी देते रहेंगे कि यह झगड़ा सांप्रदायिक हिंसा का रूप ले सकता है। इस तरह आप चाहें तो एक छोटी सी घटना को बड़ी घटना में वदलकर पूरे प्रशासन को और सरकार को कटघरे में खड़ा कर सकते हैं। आप चाहें तो ऐसी किसी घटना की रिपोर्टिंग करने के दो-चार दिन पहले बच्चों के आपसी झगड़ें को दिखाकर यह चेतावनी दे सकते हैं कि ये झगड़ा कबी भी हिंक रूप ले सकता है, जाहिर है प्रशासन आपकी इस बात को कतई गंभीरता से नहीं लेगा। इस खबर के प्रसारण के दो चार दिन बाद आप बच्चों को अच्ची तरह भड़काकर उनको लड़ा सकते हैं। इस संबंध में अगर किसी तरह के मार्गदर्शन की जरुरत हो तो तत्काल स्टुडिओ से संपर्क कर सकते हैं। शीघ्र ही आने वाले देश के एक सबसे तेज न्यूज़ चैनल के लिए अपराधिक मानसिकता में जीने वाले, अपराधियों और ब्लैक मेलरों से संपर्क रखने वाले होशियार, तेजतर्राट और खबर को सूंघकर पहचान सकने वाले तत्काल आवेदन करें।
(साभार http://www.hindimedia.in )
टीवी न्यूज चैनल के लिए तत्काल चाहिए
रमता जोगी
Thursday, 22 May 2008
शीघ्र ही शुरु होने जा रहे हिन्दी के एक न्यूज़ चैनल के लिए देश के गाँव-गाँव से लेकर शहरों के गली मोहल्ले तक टीवी रिपोर्टर यानी टीवी पर खबरें देने वाले संवाददाताओं की आवश्यकता है, जो अपने शहर या मोहल्ले में होने वाली घटनाओं की रिपोर्टिंग कर सके। आवेदक के लिए कोई शैक्षणिक योग्यता निर्धारित नहीं है, कोई भी थोड़ा पढा-लिखा आवेदन दे सकता है। लेकिन आवेदक को शहर के अपारधियों से लेकर पुलिस वालों से अच्छे संबंध होना चाहिए, ताकि उसे अपराध जगत की खबरें आसानी से मिल सके। अगर आवेदक खुद ब्लैकमैलिंग, चोरी, लूट बलात्कार जैसे अपराध में जेल जा चुका है या किसी दुश्मन द्वारा फँसाया जा चुका है तो उसके आवेदन पर तत्काल विचार किया जाएगा। ऐसे आवेदक को अपने ऊपर चल रहे मुकदमों, पुलिस में अपने खिलाफ दर्ज रिपोर्ट, अखबार में अपने खिलाफ छपी खबरों की कतरनें आदि प्रमाण के रूप में भेजना होगी। अपने आवेदन के साथ चैनल को हत्या, बलात्कार, लूट, धोखाधड़ी जैसे अपराध करने वालों की सूची, उनके द्वारा किए गए सफल अपराधों की सूची और वे किस अपराध में पारंगत हैं इसका पूरा व्यौरा भेजना होगा ताकि इस तरह के अपराधों पर चैनल उनसे तत्काल संपर्क कर उनसे इस तरह के अपराध पर विस्तार में चर्चा कर उनकी विशेषज्ञता का फायदा ले सके। आवेदक को चाहिए कि वो अपने शहर या गाँव में होने वाली हर छोटी बड़ी घटना पर नजर ही नहीं रखें बल्कि किसी भी घटना के होने के तत्काल बाद बढ़ा-चढ़ाकर उसकी खबर दें। किसी खबर को जितनी जल्दी भेजा जाएगा, उस संवाददाता को उतना ही योग्य माना जाएगा। शहर में होने वाली चोरियाँ, हत्या, बलात्कार, अपहरण, अवैध शराब के अड्डे, किसी भी सांस्कृतिक कार्यक्रम या मेले में होने वाले फूहड़ नाच-गाने जैसी खबरें प्रमुखता से चैनल पर प्रसारित की जाएगी। अगर कोई रिपोर्टर साहित्यिक, सांस्कृतिक या धार्मिक रुचियों की खबरें भेजेगा तो ऐसी खबरें कतई स्वीकार नहीं की जाएगी। किसी साहित्यिक आयोजन की बजाय आपके शहर में कोई फिल्मी या टीवी अभिनेत्री किसी ब्यूटी पॉर्लर का उद्घाटन करे, किसी गली मोहल्ले में कहीं कोई फैशन शो हो रहा हो, ऐसी खबरों को प्रमुखता दें। टीवी चैनलों पर सास बहू के नकली झगड़ों को देखकर लोग अब बोर हो चुके हैं। हमारे द्वारा किए गए शोध से पता चला है कि लोग अब असली झगड़ें देखना चाहते हैं। इसके लिए आप अपने गली मोहल्ले से लेकर आसपास के मोहल्लों में ऐसे परिवारों की सूची बनालें जहाँ आए दिन सास-बहू, देवरानी-जेठानी ननंद-भोजाई के बीच लड़ाई झगड़े होते हों। इन झगडों को आप सीधे चैनल पर भी प्रसारित कर सकते हैं और अगर आप चाहें तो इन सास बहू को या ननंद-भोजाई या देवरानी-जेठानी को अपने स्टुडिओ में भी ला सकते हैं। हम इनसे सीधी चर्चा कर इसका सीधा प्रसारण करेंगे ताकि लोग समझ सकें कि घरों में आखिर ये झगड़ें क्यों होते हैं और इनको कैसे सुलझाया जा सकता है। इनसे बात करने के साथ ही हम देश के जाने माने मनोवैज्ञानिकों से, देश की जानी-मानी सासुओं और बहुओं से भी बात करेंगे। लेकिन यह ध्यान रहे कि आप हर बार अलग अलग मोहल्ले की सास-बहुओं के झगड़ें कवर करें। एक ही मोहल्ले की एक घटना का प्रसारण एक बार ही किया जाएगा। एक ही मोहल्ले से दूसरे परिवार को मौका नहीं दिया जाएगा।
अगर आप सास बहुओं के झगड़ों को कवर नहीं कर सकते हैं तो गली मोहल्ले में केल खेल में लड़ने वाले बच्चों के झगडो़ से फभी अपनी रिपोर्टिंग की शुरुआत कर सकते हैं। बच्चों के लड़ाई-झगड़ों में बड़े भी कूद पड़ते हैं और कई बार बच्चों की लडा़ई महाभारत की लडा़ई को भी मात कर देती है। आप चाहें तो गली मोहल्ले में खेलेन वाले बच्चों को उकसाकर भी उनको आपस में लड़ा सकते हैं और टीवी पर लाईव दिखा सकते हैं। टीवी पर बच्चों की लडा़ई दिखाने के बाद उनके माँ-बाप, मोहल्ले वाले और फिर उनकी जाति और समुदाय वाले भी बीच में कूद जाएंगे और इस तरह हम अपने चैनल पर बार बार यह चेतावनी देते रहेंगे कि यह झगड़ा सांप्रदायिक हिंसा का रूप ले सकता है। इस तरह आप चाहें तो एक छोटी सी घटना को बड़ी घटना में वदलकर पूरे प्रशासन को और सरकार को कटघरे में खड़ा कर सकते हैं। आप चाहें तो ऐसी किसी घटना की रिपोर्टिंग करने के दो-चार दिन पहले बच्चों के आपसी झगड़ें को दिखाकर यह चेतावनी दे सकते हैं कि ये झगड़ा कबी भी हिंक रूप ले सकता है, जाहिर है प्रशासन आपकी इस बात को कतई गंभीरता से नहीं लेगा। इस खबर के प्रसारण के दो चार दिन बाद आप बच्चों को अच्ची तरह भड़काकर उनको लड़ा सकते हैं। इस संबंध में अगर किसी तरह के मार्गदर्शन की जरुरत हो तो तत्काल स्टुडिओ से संपर्क कर सकते हैं। शीघ्र ही आने वाले देश के एक सबसे तेज न्यूज़ चैनल के लिए अपराधिक मानसिकता में जीने वाले, अपराधियों और ब्लैक मेलरों से संपर्क रखने वाले होशियार, तेजतर्राट और खबर को सूंघकर पहचान सकने वाले तत्काल आवेदन करें।
(साभार http://www.hindimedia.in )
रविवार, 6 अप्रैल 2008
जाति के सवाल पर गुत्थमगुत्था
पिछले दिनों रवीश जी के कस्बे में खूब हंगामा मचा..बहस जाति को लेकर छिड़ी...तो कुछ लोगों का खून खौल गया...रवीश की मंशा पर सवालिया निशान लगाए गए...साबित करने की कोशिश शुरु हो गई कि जब रवीश की सोच में खुद खोट है...तो वो जाति का सवाल क्यों उठा रहे हैं...मामला जान से मारने की धमकी तक पहुंच गया...दरअसल जाति का सवाल केवल बिहारियों से जुड़ा नहीं है....ये सवाल हमारी मानसिकता से जुड़ा है....और उतना ही उस माहौल से जहां बार बार हमारी जाति का एहसास कराया जाता है...मेरी जाति क्या है ये सवाल सबसे पहले मुझसे मेरे उस दोस्त ने पूछा....जिसका तालुल्क मोतीहारी से था...जब मैने सवाल टालने की कोशिश की...तो मेरी जाति की छानबीन के लिए मेरे कैरेक्टर का विश्लेषण तक कर डाला गया....बाद में जाति पर कलंक की श्रेणी में डालकर मेरा खूब प्रचार प्रसार किया गया...लेकिन सच बताऊं मुझे ना तो गुस्सा आया और ना ही मैने कभी इस बात की शिकायत की...लेकिन इस पूरे अनुभव से मैने बिहारियो के बारे में एक पूर्वाग्रह जरुर गढ़ लिया कि...बिहार के लोग आपको जानने से ज्यादा आपकी जाति जानने में दिलचस्पी रखते हैं...इस दौरान मुझे खुद को जाति के जाल से निकलने का मौका जरुर मिल गया...सबसे पहले अपने नाम के आगे से जाति का पोस्टर हटाया..और जता दिया कि मेरे खून का ब्वॉयलिग प्वाइंट इतना भी कम नहीं कि जाति के नाम पर खौल उठे...ये सब इसलिए लिख रहा हूं कि रवीश के ब्लॉग पर जाति की बहस मरने मारने तक जा पहुंची है...दरअसल पूरे मामले में गलती किसकी है...जाति को जहर मानकर उस पर कुछ गंभीर चिंतन करने वाले की...या फिर किसी के विचार को अपनी जाति पर हमला समझकर व्यक्तिगत छिंटाकशी करने वाले की..जहां तक मुझे लगता है अगर आपको जाति से लडना है तो पहले खुद से लडना होगा...जाति के पूर्वाग्रह से हम सब ग्रस्त हैं...वो भी जो जाति को स्वाभिमान से जोड़ते हैं...और वो भी जो जाति के विरोध मे अपनी आवाजें बार बार बुलंद करते रहते हैं....
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