सोमवार, 9 फ़रवरी 2009

खामोश...खबर बेखबर है...2

वक्त इलेक्ट्रानिक मीडिया को लेकर विमर्श का है...और शायद रवीश कुमार ने इस विमर्श की शुरुआत कर दी है...उनके लहजे में टीवी की बिगड़ती भाषा को लेकर रोष दिखता है...वो दर्शकों को बताते हैं कि आप को खबरों के नाम पर बेवकूफ बनाया जा रहा है...दरअसल ये रवीश कुमार की तकलीफ नहीं... बल्कि उन लोगों की भी पीड़ा है जो टीवी पर बेहतर करना चाहते हैं.. रवीश की लड़ाई टीवी पत्रकारिता की साख को बनाए रखने की है...उनकी लडाई को भले कुछ तथाकथित पत्रकार टीआरपी को लेकर उनका फ्रस्टेशन करार दें...लेकिन ये सच है जिस साख के लिए रवीश जूझ रहे हैं...वो एक दिन या कुछ घंटों में नही बनती.. साख बनाने में वक्त लगता है...और ये काम रवीश जैसे पत्रकारों ने बखूबी किया है...इसलिए खुद के सामने पत्रकारिता को बेरहमी से कत्ल किए जाने की उनकी पीड़ा समझी जा सकती है...दरअसल दौर मंदी का चल रहा है और ऐसे में चारों ओर आर्थिक पलहुओं पर जोर शोर से बात हो रही है...पैसे के सूखेपन से न्यूज चैनल भी परेशान हैं... ऐसे में टीआरपी लाने का दबाव सभी न्यूज चैनलों पर है...लेकिन ऐसे में टीवी पत्रकारिता की साख को खारिज नहीं किया जा सकता...अगर आज आप दर्शको को जायका खराब करेंगे.. तो आगे बेहतर दिखाने की कोई जगह आपके पास नहीं होगी...वैसे भी टीवी के अस्सी फीसदी हिस्से पर मनोरंजन का बोलबाला है...और कुछ टीवी न्यूज चैनल उस पर भी अपनी नजरें गढ़ाए बैठे हैं...साफ है कि बाजार के तकाज़ों से आप खबरों की साख नहीं तोल सकते...बाजार उपभोग और उपभोक्ता की परिभाषा से चलता है...उसे अच्छे बुरे से कोई मतलब नहीं होता...ऐसे में खबरों को बाजार के सुपुर्द करना खतरनाक तो है ही...दिल पर हाथ रख कर बताइये कि क्या आप पत्रकार के तौर पर अपने लिए लोगों के नजरों में सम्मान नहीं देखना चाहते? अगर हां तो वक्त संजीदा होने का है..नहीं तो इंतजार करिए टीवी पत्रकारिता के हमेशा के लिए खत्मे का..उस वक्त वो बाजार भी आपका साथ छोड़ देगा...वही बजार जिसके हाथों में आपने अपनी साख गिरवी रख दी है...

3 टिप्‍पणियां:

sarita argarey ने कहा…

बडी देर बाद होश आया पत्रकारिता बचाने का । मंदी की चाबुक पडी तो होश ठिकाने आने लगे ।अभी भी कैसी पीडा ...? दूसरे को गरियाना ही तो पत्रकारिता नहीं । लायें दमदार खबर । मध्यप्रदेश में एक मंत्री ने चार कागज़ मेज़ पर पटक दिये तो चार दिन शोर मचाया महिला की अस्मिता का । एक मंत्री की कार से महिला की मौत पर ज़बरदस्त हंगामा ...? इनके कर्मठ पत्रकार प्रदेश के मंत्रियों के दूसरे चिट्ठे क्यों नहीं बताते । क्यों नहीं बनाते प्रदेश के किसानों ,बिजली ,पानी की खबरें ...? करें कुछ अलग , किसने रोका है । दर्शकों को धिक्कारते हैं कि हद कर दी आपने । वास्तव में तो हद इन्होंने कर दी है ।

Ganesh Prasad ने कहा…

bhai sahab india tv , kya bolu iske bare me (xxxxx) "RAJAT SHARMA" PAGAL HO GAYA HAI " ARE RAJAT JI AGAR TRP BADANA HAI TO WO DIKHAIYENA AAPKI NEWS TV TRP ME BOOOM KAR JAYEGI AUR AAPKE GHARWALE BHI DEKHENGE.

indianrj ने कहा…

सुबोधजी आपने एकदम सच कहा. दरअसल कई टी वी चैनल देखकर लगता है कि या तो वो दर्शकों को बहुत बड़ा बेवकूफ मानते हैं या खुद ऐसा मानकर चल रहे हैं कि ये (सांप, स्वर्ग/नरक, बाघ/ बाघिन, प्रलय, दुनिया की समाप्ति..........) दर्शकों की पसंद होगी. ज़रूरी नहीं कि टी आर पी सिर्फ इसलिए ज्यादा हो कि लोगों को वो सब बहुत पसंद आ रहा है. मैं खुद कई बार इसलिए ऐसे बेवकूफाना समाचारों को देखती हूँ क्योंकि उससे एकदम अलग तरह का मनोरंजन होता है यानी अरे ये पत्रकार (जिनसे बुध्हिजिवी होने की उम्मीद की जाती है) इतनी मूर्खतापूर्ण बात कह रहे हैं आखिर इनसे ज्यादा समझदार तो हम ही हैं जो ऐसी बातों पर यकीन नहीं करते.