शुक्रवार, 12 जून 2009

एक कविता दोस्ती के नाम


कुछ सुनने का मन ना हो...
तो कुछ कहने की फुरसत निकाल लेनी चाहिए...
कभी सुना या कहा पूरा नहीं होता...
कभी समझा हुआ सच नहीं होता...
कभी सच समझना मुश्किल होता है...
तो कभी समझा हुआ मुश्किल लगता है
गिले शिकवे की लड़ाई
जिंदगी से बड़ी नहीं होती
शिकायतें अक्सर पराई होती हैं
खुद से नहीं होतीं
दुनिया बड़ी है
उसके दस्तूर बड़े हैं
लोग बडे हैं
उलझने बड़ी हैं
लेकिन दोस्त जिंदगी बहुत छोटी है

4 टिप्‍पणियां:

ओम आर्य ने कहा…
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ओम आर्य ने कहा…

bahut khub....

Unknown ने कहा…

achhi kavita
umda kavita

सुरेश शर्मा . कार्टूनिस्ट ने कहा…

subodhjee aachi kavita hai...thanks
aapse kahna ye hai ki agar aap subodhjee hai to google imege me suresh sharma cartoonist search karne par aapki photo show kyo hoti hai aur name ki jagah suresh sharma cartoonist show kyo hota hai
ye sudhara jana chahiye..aapka kya khyal hai?