शनिवार, 11 जुलाई 2009

कौन खुश रविवार या शनिवार

शनिवार से खास मुहब्बत है...उनको तो और भी होगी जो शनिवार और रविवार दोनो दिन छुट्टी मनाते हैं..लेकिन मेरी किस्मत इतनी मेहरबान नहीं..फिर भी शानिवार बचपन से भाता है...शनिवार हमेशा असलाया हुआ लगता है..जैसे कह रहा हो बैठो यार कितना काम करोगे..बाजार में रौनक..थियेटर में चहलपहल..सड़कों पर भीड़ कम..लगता है दुनिया आराम करने का इरादा लिए निकल गई हो..अगर ढूंढिये तो शनिवार से मोहब्बत करने वाले संडे की कद्र करने वालों से ज्यादा मिल जाएंगे..शनिवार का रुतबा कायम है...संड को भले शनिवार से शिकायत हो मुझे नहीं है...कहते हैं कभी कभी सफर मंजिल से ज्यादा खुशनुमा होता है...शनिवार के साथ ऐसा ही है...संडे बाद में आता है लेकिन छुट्टी के इंतजार में छुट्टी का सारा मजा शनिवार के हिस्से में आ जाता है...और सारा काम सोमवार के मत्थे पड़ जाता है...शनिवार का मिजाज मुझे बहुत पसंद है..भगवान करे सप्ताह में तीन शनिवार पड़ें..ताकि तीन संडे का इंतजार रहे...जिन्हें छुट्टी से एतराज है वो काम करें...बस हमें आराम करने दें..

5 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

सुबोध जी,
क्या बात है... तहलाका पर आते ही अब तो आप रोज ही लगता तहलका मचा रहे है...लगे रहिए एक दिन कामयाबी आपकी कदम छुएगी.....

समयचक्र ने कहा…

भाई सुबोध जी
शनिवार और रविवार दोनों खुश है . शनिवार को काम से आ जाने के बाद इतवार की रात्री तक छुट्टी तो रहती है . हा हा

Shiromani ने कहा…

Bhagwan kare aapki zindagi me roj shaniwar aaye.

"MIRACLE" ने कहा…

bilkul sahi kaha bhai......man ki baat....keh dali....

मिथिलेश श्रीवास्तव ने कहा…

सही कहा,शनिवार का इंतजार तो मुझे भी रहता है, क्योंकि सैटरडे नाइट से ही खुमारी चढ़ने लगती है