एक शाम बातें कर रही थी
आने वाली रात से
जाने वाले दिन से
अंधेरा बार बार डराता था
वो बयां करता था
रात की वीरानी को
वो सुनाता था भटके
मुसाफिरों के किस्से
जब उजाले की बारी आयी
तो वो कुछ नहीं बोला
शाम समझ गयी
इस खामोशी का इशारा
कि
उसे भी पार करनी है
ये रात
खामोशी के साथ