रविवार, 2 सितंबर 2007

दहशतगर्द

उन्हें नहीं मालूम थे
तुम्हारे इरादे,
वो नहीं जानते थे
कि
तुम्हारी दुश्मनी
किससे है,
वो जानना भी नहीं चाहते थे
कि तुम ऐसे क्यों हो
लेकिन
फिर भी
तुमने उन्हे मार दिया
और
बता दिया
कि
तुम कायर हो
तुम्हारा
कोई भगवान नहीं
तुम्हारा
कोई अल्लाह नहीं
तुम कायरता की बैशाखी
पर
चलने वाले दहशतगर्द हो
(शनिवार,२५ अगस्त को हैदराबाद में बम धमाकों में तमाम मौतों के बाद लिखी कविता,ये शहर मेरे काफी करीब है,शायद अपने लखनऊ से भी ज्यादा)

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