खबरों को लेकर खबरदार बनने का नाटक क्यों। क्यों नहीं परचून की दुकान या फिर शराब का ठेका। माफ कीजिएगा न्यूज सेंस आपका मरा है लोगों का नहीं। बारिश केवल दिल्ली और मुंबई में नहीं होती बरखूद्दार, लखनऊ और मुज्जफरपुर में भी होती है। सड़कें वहां भी भरती हैं, जाम से दो चार वहां के लोग भी होते हैं। लेकिन तुम्हारे न्यूज सेंस की हदें दिल्ली और मुंबई से आगे बढ़ नहीं पाती। पैसे की मलाई यहीं है तुम यहीं की मलाई चाटते रहो। टीवी पर इंटरटेनमेंट चैनल के फुटेज दिखाकर तुम खुद को भले क्रिएटिव कहो। लेकिन हम तो इसे चोरी कहते हैं। तुम पैसे बनाने के चक्कर में क्या से क्या हो गए इसको लेकर तो अब हम भी कन्फ्यूज हैं। अंधविश्वास फैलाने में तो तुमने पाखंड का धंधा करने वाले ज्योतिषों को पीछे छोड़ दिया है। डर क्रिएट करने में तुमने हॉरर फिल्मों को पीछे छोड़ दिया है। तुमसे तो अच्छे वो कार्टून चैनल हैं जो कम से कम बच्चों को तो बांधे रखते हैं। तुम अपनी खबरों से दो मुल्कों के बीच बरसों में बनने वाले रिश्ते गंधा सकते हो। तुम अपनी खबरों से खली का फर्जी हैव्वा तैयार कर सकते हो। तुम अपनी खबरों से बालिका बधू की नई कहानी गढ़ सकते। लेकिन तुम अब अपनी खबरों से दो मुल्कों को पास नहीं ला सकते। तुम सरकारों को क्या हम आम आदमी को बेचैन नहीं कर सकते। बुरा लगे तो लगता रहे... तुम्हारा न्यूज सेंस तुम्हे मुबारक। तुम्हारी हदे यहीं तक है और छिछले शब्दों में कहें तो तुम्हारी औकात इतनी भर रह गई है। हा इतना जरुर कहूंगा, कि बारिश की रिपोर्टिंग करते करते अपने लिए इतना पानी खोज लेना जहां तुम अपने न्यूज सेंस के साथ डूबकर मर सको।
3 टिप्पणियां:
जी हां सही कहा आपने की दिन पर दिन हमारी पत्रकारिता और टी चैनल की रिपोर्टस या फिर स्पेशल रिपोर्टस इस पर ही होती है कि दुनिया में परलय होने वाला है.. साढ़े साती से कैसे बचे...सिरियलस में क्या हो रहा है...अगर न्यूज़ की बात करे तो न्यूज़ तो सिर्फ २० प्रतिशत ही न्यूज़ चैनल पर रह गई है...
बहुत ही शानदार ताना मारा है आपने। कहीं ना कहीं संवेदनाएं भी खो गई हैं।
सही कहा आपने लेकिन गंभीर पत्रकारिता इन्हें मंहगी पड़ गई और ये फिर वापस अपने रंग में आ गए.....क्योंकि इनका ऐसा सोचना है कि दर्शक यही देखना चाहता है।
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