शुक्रवार, 4 दिसंबर 2009

नाकामियों का जश्न


25 साल की नाकामियों का जश्न कैसे मनाया जाता है। देखना हो तो भोपाल आईए। कैमरे 25 साल पुरानी त्रासदी की भावुकता की खोज में जुटे हैं। पुराने सवालों को झाड़ पोछ कर फिर से जिलाने की कोशिश हो रही है। पहले भी होती रही है और आगे भी होती रहेगी। हादसों को याद करने का यही तरीका है हमारे पास। उससे आगे देखने की ना तो हमारी कूबत है और ना ही कोई इच्छा शक्ति। नाकामियों पर आंसू बहाना हमारी आदत है। पहले 26/11 पर आंसू अब भोपाल की 25 सीं बरसी पर आंसू। 3 दिसम्बर 1984 को भोपाल ने जो मंजर देखा उसे हम याद भी कैसे कर सकते हैं। दोषी अभी भी खुलेआम घूम रहे हैं। सबसे बड़ा दोषी एंडरसन मौज कर रहा है। मुआवजे की छीनाझपटी मची है सो अलग। यूनियन कार्बाइड कार्पोरेशन की फैक्ट्री बूत की तरह खड़ी है। 25 सालों में हादसे से उठे सवालों पर जंग लग गई है। अब कोई नहीं जानना चाहता कि भोपाल को नरसंहार के मुहाने पर क्यों छोड़ दिया गया। क्यो इस हादसे के बाद भी कसूरवार खुली हवा में सांस ले रहे हैं। हादसे का सबसे बड़ा गुनहगार एंडरसन अभी भी यही दलील दे रहा है कि ये साजिश थी और साजिश से निपटने के लिए दुनिया में कोई सैफ्टी सिस्टम डिजाइन किया नहीं गया है। लेकिन 25 साल पहले हादसे के ठीक पहले फैक्ट्री में कुछ ऐसा हो रहा था। जो नहीं होना चाहिए था। जाने अनजाने साजिश रची जा रही थी। फैक्ट्री के अंदर एक बड़े हादसे की बू महसूस की जाने लगी थी। 2 दिसम्बर 1984 की रात से करीब एक सप्ताह पहले फैक्ट्री में जो हो रहा था। उससे साफ था कि कुछ ना कुछ तो गड़बड़ है। अचानक फैक्ट्री ने अपने एक कर्मचारी को निकाल दिया और करीब करीब सभी कर्मचारियों पर पेनाल्टी लगा दी गई। फैक्ट्री ने ये कदम सिर्फ इसलिए उठाया क्योंकि कर्मचारियों ने सैफ्टी नार्म्स से हटने से मना कर दिया था। जाहिर था फैक्ट्री के अंदर के हालात अच्छे नहीं थे। कर्मचारियों पर दबाव था और उन्हें बुरे से बुरे हालात में काम करना पड़ रहा था। यूनियन कार्बाइड कार्पोरेशन सेविन नाम का पेस्टिसाइड बनाती थी। 1979 से ही भोपाल की फैक्ट्री में मिथाइल आईसो साइनेड का इस्तेमाल हो रहा था। जबकि सेविन का उत्पादन करने वाली दुनिया की दूसरी कंपनी बेयर MIC के इस्तेमाल से तौबा कर चुकी थी। बावजूद इसके यूनियन कार्बाइड कार्पोरेशन पैसा बचाने के लिए MIC यानी मिथाइल आईसो साइनेट का इस्तेमाल करती रही। चूक यहीं तक नहीं थी इस गैस को जिस तरीके से भोपाल की फैक्ट्री में बनाया जा रहा था वो तरीका भी गलता था। पैसा बचाने के लिए यूनियन कार्बाइड अपने पुराने और खौफनाक ढर्रे पर चलती रही। उस वक्त किसी ने इस बात की ओर भी ध्यान नहीं दिया कि एक खतरनाक गैस का इस्तेमाल करने वाली फैक्ट्री शहर के बीचों बीच कैसे है। सवाल यहीं खत्म नहीं होते उस वक्त के सेफ्टी नार्मस के मुताबिक MIC जैसी गैस को स्टील के छोटे छोटे कंटेनर में रखा जाना चाहिए था लेकिन यूनियन कार्बाइड कार्पोरेशन में ऐसे नियमों का कोई मतलब नहीं था। फैक्ट्री ने महज पैसा बचाने के लिए MIC जैसे खतरनाक गैस को बड़े बड़े टैंकों में रखा। . यही नहीं भोपाल की खूनी फैक्ट्री नियम कानून को ताक पर रखकर चलाई जा रही थी। सेफ्टी नियमों का यहां कोई मतलब नहीं था। इसी फैक्ट्री के वर्जीनिया प्लांट में फोर लेयर आटोमेटिक सैफ्टी सिस्टम लगा था लेकिन हिंदुस्तान में उसकी फैक्ट्री सिर्फ एक और वो भी मैनुयल सैफ्टी सिस्टम के भरोसे चल रही थीष। फैक्ट्री के रेफ्रिजरेशन यूनिट का भी बुरा हाल था । MIC जैसी जहरीली गैस के कंटेनर से जुड़ी एक रेफ्रिजरेशन यूनिट हुआ करती थी। इस यूनिट को कुछ पैसे बचाने के लिए वारेन एंडरसन ने बंद कर दिया। माना जाता है कि अगर ये रेफ्रिजरेशन यूनिट चल रही होती तो भोपाल का हादसा काफी हद तक रोका जा सकता था। गैस को जिस तापमान पर रखा जाना चाहिए था उसे लेकर भी खूब लापरवाहियां हुईं। जिस MIC को 4.5 डिग्री सेल्सियस पर स्टोर किया जाना चाहिए था उसे 20 डिग्री सेल्सियस पर रखा गया था। भोपाल में 25 साल पहले जिस गैस ने पूरे भोपाल की हवा को जहरीला कर दिया उस गैस का रिसाव टैंकर नंबर 610 में पानी जाने से हुआ था। लेकिन इस बात का खुलासा आज भी नहीं हो सका है कि ये टैंकर तक पानी पहुंचा कैसे। टैंकर नंबर 610 में पानी जाने की वजह से ही तापमान 200 डिग्री सेल्सियस पहुंचा और टैंकर से निकली गैस ने भोपाल को बेदम कर दिया। यही नहीं 2 से 3 दिसंबर की रात जब भोपाल जहरीली हवा की जद में था उस वक्त शहर में मौत की गैस पर काबू पाने का कोई इंतजाम नहीं था। फैक्ट्री में अपातकाल के लिए लगा स्प्रे सिस्टम मजह 13 मीटर तक का ही था जो काफी नहीं था। इतना ही नहीं कंपनी के फ्लेयर टावर का डिजाइन भी गलत थी। माना जाता है कि अगर स्प्रे सिस्टम और फ्लेयर टावर सही होता तो इस हादसे के असर को आधे के करीब कम किया जा सकता था। कंपनी ने बात बात पर कंजूसी बरती। कंपनी में गैस स्क्रबर का इस्तेमाल सिर्फ इसलिए नहीं हो रहा था कि कंपनी के पास कास्टिक सोड नहीं था। अगर कंपनी के पास कास्टिक सोडा होता तो भोपाल की त्रासदी की तस्वीरें इस कदर खौफनाक नहीं होतीं...फैक्ट्री में कर्मचारियों को सेफ्टी मनुअल की किताबें अंग्रेजी में दीं जबकि इस फैक्ट्री में ज्यादातर कर्मचारियों को अंग्रेजी नहीं आती थी। जब कर्मचारियों ने हिंदी में सेफ्टी मैनुअल की मांग की तो उनकी मांग को कंपनी के CEO एंडरसन ने साफ तौर पर खारिज कर दिया। पैसे बचाकर मुनाफे कमाने के लिए भोपाल की यूनियन कार्बाइड जुगाड़ के जरिए चलाई जा रही थी। यहां कंपनी के बॉयलर को चलाने के लिए 12 आपरेटर की जरुरत होती थी लेकिन कंपनी ने केवल 6 आपरेटर रखे थे। 6 आपरेटर कंपनी के रवैये से नाराज होकर कंपनी छोड़ चुके थे। यही नहीं जब कंपनी से ऑपरेटर की डिमांड की गई तो उनकी नियुक्ति करने के बजाए हर घंटे होने वाले बायलर चेकिंग का वक्त बढ़ाकर दो घंटे का कर दिया। साफ था नियमों को ताक पर रखने की छूट एंडरसन एंड कंपनी को सरकार की मिलीभगत से नहीं मिल सकती थी। अखबारों में फैक्ट्री के बारे में छपी तमाम रिपोर्ट के बावजूद उस वक्त की मध्यप्रदेश सरकार ने फैक्ट्री को सुरक्षा के लिहाज से फिट बताया। 25 साल बाद भोपाल का जख्म फिर से कुरेदा जा रहा है। नाकामियों की कहानी गढ़ी जा रही है जो गुनहगार हैं उनकी आंखों का पानी मर चुका है और जो जी जी कर मर रहे हैं उनकी आंखे पथरा चुकी हैं।

रविवार, 8 नवंबर 2009

अच्छा हुआ खबर ज्यादा नहीं चली


मैं चाहता भी नहीं था कि प्रभाष जोशी के गुजर जाने की खबर टीवी चैनलों पर चले। अमिताभ बच्चन और रणवीर कपूर के फूहड़ ड्रामें के बीच प्रभाष जोशी के निधन की खबर बार बार चुभी। जैसे लगा कोई गलीज और गिरा इंसान किसी भले आदमी के मरने की खबर सुना रहा है। प्रभाष जोशी को पहली बार लखनऊ में सुना दोबारा दफ्तर में मुलाकात हुई, जल्दी में थे सो ज्यादा संवाद नहीं हो पाया। फिर मिलने का मौका तब मिला जब प्रभाष जी हमेशा के लिए आंखें बंद कर चुके थे। फिर भी नजरें मिलाने की हिम्मत नहीं हुई। एक अपराधी की तरह थोड़ी देर खड़ा रहा। सोचा अच्छा हुआ उनके जीते जी उनसे मिलना नहीं हुआ। वरना पूछते क्या करते हो तो क्या बतता। क्या कहता उनसे कि रोज पत्रकारिता के साथ छल कर रहा हूं। प्रभाष जी थे तो भरोसा था लेकिन उनके जाने के बाद बचा खुचा भरोसा भी खाक हो गया। पत्रकारिता की रेस में अभी ज्यादा नहीं दौड़ा हूं फिर भी हांफने लगा हूं। अभी ज्यादा उम्र नहीं हुई है फिर भी लगता है कि उम्र बीत गई। क्या वाकई प्रभाष जी के साथ पत्रकारिता की सच्ची लौ हमेशा के लिए बुझ गई। लगता तो यही है।
प्रभाष जी ने जनसत्ता को जो पहचान दी वैसी पहचान आज तक कोई अखबार नहीं बना पाया। अखबारों ने प्रसार संख्या तो खूब बढा़ई लेकिन ये प्रसार पैसे का था लोगों के दिलों में ज्यादा से ज्यादा दस्तक देने का नहीं। नंबर वन की दौड़ में खबर को ही कुचल दिया गया। अब अखबार आवाम की आवाज नहीं, बल्कि बाजार की आवाज हैं। सच्चे और सामाजिक विचारों को अखबार में कैसे और कितनी जगह मिलती है सब जानते हैं। सच बोलने की हिम्मत किसी में नहीं है। सरकार के तलवे चाटने वाले चैनलों और अखबारों के बीच प्रभाष जी की आवाज का खामोश होना, किसी मातम से कम नहीं है। प्रभाष जी खबर को अनाथ करके चले गए। प्रभाष जी के जाने के बाद खबर की खबर लेने वाला कोई नहीं बचा है। बस अफसोस इसी बात का है कि हमने प्रभाष जी को अपनी मरती पत्रकारिता की राख के साथ विदा किया है।

शुक्रवार, 18 सितंबर 2009

जिंदगी का एहसास

जिंदगी धूप की तरह है,
कभी हसीन लगती है,
कभी चुभती है,
कभी डूबते सूरज की तरह गुम हो जाती है।
जिंदगी उस फूल सी भी लगती है,
जो तमाम हसरतें लिए खिलता है
फिर मुरझा जाता है,
जिंदगी कुछ कुछ हवा के एहसास की तरह भी है
जो कभी ताजगी देता है
तो कभी गर्म थपेड़ों सा जान पड़ता है।
जिंदगी उस अधूरी कहानी सी है
जिसके पूरे होने का इंतजार
मुझे भी शिद्दत से है।
जिंदगी कुछ कुछ मां सी है
जिसके एहसास की गहराई को
मैं हर वक्त महसूस करता हूं।

गुरुवार, 10 सितंबर 2009

तुम्हारा न्यूज सेंस तुम्हे मुबारक

खबरों को लेकर खबरदार बनने का नाटक क्यों। क्यों नहीं परचून की दुकान या फिर शराब का ठेका। माफ कीजिएगा न्यूज सेंस आपका मरा है लोगों का नहीं। बारिश केवल दिल्ली और मुंबई में नहीं होती बरखूद्दार, लखनऊ और मुज्जफरपुर में भी होती है। सड़कें वहां भी भरती हैं, जाम से दो चार वहां के लोग भी होते हैं। लेकिन तुम्हारे न्यूज सेंस की हदें दिल्ली और मुंबई से आगे बढ़ नहीं पाती। पैसे की मलाई यहीं है तुम यहीं की मलाई चाटते रहो। टीवी पर इंटरटेनमेंट चैनल के फुटेज दिखाकर तुम खुद को भले क्रिएटिव कहो। लेकिन हम तो इसे चोरी कहते हैं। तुम पैसे बनाने के चक्कर में क्या से क्या हो गए इसको लेकर तो अब हम भी कन्फ्यूज हैं। अंधविश्वास फैलाने में तो तुमने पाखंड का धंधा करने वाले ज्योतिषों को पीछे छोड़ दिया है। डर क्रिएट करने में तुमने हॉरर फिल्मों को पीछे छोड़ दिया है। तुमसे तो अच्छे वो कार्टून चैनल हैं जो कम से कम बच्चों को तो बांधे रखते हैं। तुम अपनी खबरों से दो मुल्कों के बीच बरसों में बनने वाले रिश्ते गंधा सकते हो। तुम अपनी खबरों से खली का फर्जी हैव्वा तैयार कर सकते हो। तुम अपनी खबरों से बालिका बधू की नई कहानी गढ़ सकते। लेकिन तुम अब अपनी खबरों से दो मुल्कों को पास नहीं ला सकते। तुम सरकारों को क्या हम आम आदमी को बेचैन नहीं कर सकते। बुरा लगे तो लगता रहे... तुम्हारा न्यूज सेंस तुम्हे मुबारक। तुम्हारी हदे यहीं तक है और छिछले शब्दों में कहें तो तुम्हारी औकात इतनी भर रह गई है। हा इतना जरुर कहूंगा, कि बारिश की रिपोर्टिंग करते करते अपने लिए इतना पानी खोज लेना जहां तुम अपने न्यूज सेंस के साथ डूबकर मर सको।

मंगलवार, 1 सितंबर 2009

'मोहल्ला' का कीचड़नामा

घटिया आलोचनाओं का इतना ऊंचा ज्वार उठेगा इसके बारे में सोचा नहीं था। मोहल्लेदारी इतने छिछले स्तर पर चली जाएगी इसका भी इल्म नहीं था। प्रभाष जोशी की आलोचना उसके बाद आलोक मेहता की छिछालेदर और अब आलोक तोमर की ऐसी तैसी। सब मिलाकर गाली गलौज का भरपूर इंतजाम। फिलहाल तो बौद्धिक लहजे में गरियाते गरियाते मोहल्ले में इतना कीचड़ तो हो ही गया है कि जिस पर मन हो उछाल दो। ऐसा नहीं की इस कीचड़ उछाल बौद्धिकता की शिकायत मैंने अविनाश जी से नहीं की। लेकिन शायद पाठकों की चाह में मेरी शिकायत अनसुनी हो गई। दरअसल किसी की निजी जिंदगी में तांकझांक करके आलोचनाओं की तथ्य खोज लाना बड़ा आसान है। प्रभाष जोशी, अविनाश जी और उनके सुर में सुर मिलाने वालों के लिए भले खलनायक हों। लेकिन हमारे जैसे नए लोगों ने उन्हें पढ़कर पत्रकारिता की ए बी सी डी सीखी है। जरुरी नहीं कि आपकी निजी सोच, आपकी व्यवहारिक जिंदगी से हमेशा मेल खाए। ऐसे में किसी पत्रकार या बुद्धिजीवी (खासकर वो जिसे पत्रकारिता या साहित्य के आदर्श होने की हैसियत हासिल हो) को उसकी निजी जिंदगी में तांकझांक करके कलंकित करना ठीक नहीं है। आप पत्रकारिता के आदर्शों (खैर अब तो रहे ही नहीं) को सब पर थोप नहीं सकते और ना ही सभी से ये उम्मीद कर सकते हैं। मोहल्ला का कीचड़नामा जारी है और अभी अभी पता चला है कि कीचड़ राजेन्द्र यादव पर उछलने के विधिवत कार्यक्रम का फीता कट चुका है।

रविवार, 30 अगस्त 2009

आडवाणी से क्या कहा भागवत ने (एक्सक्लूसिव)


( आडवाणी से क्या कहा मोहन भागवत ने इसकी जानकारी हमारे संवाददाता विमल कांत के हाथ लगी है...इस इंटरव्यू को आरएसएस के एक निष्ठावान कार्यकर्ता ने हमें मुहैया कराया है...हम आपको इतना भर बता सकते हैं कि ये स्वयंसेवक बीजेपी में बड़ी हैसियत रखता है और आडवाणी का काफी बड़ा शुभचिंतक बताया जाता है तो सुनिए क्या कुछ कहा सुना गया जब भागवत आडवाणी से मिलने पहुंचे )

आडवाणी....प्रणाम
भागवत.....प्रणाम आईये बैठिए आडवाणी जी
आडवाणी....इन मीडिया वालों ने तो नरक काट दिया है भागवत जी
भागवत....और आप क्या काट रहे हैं पार्टी को भारतीय झगड़ा पार्टी बना रखा है
आडवाणी....आप मुझ पर क्यों नाराज हो रहे हैं मैं तो बोलता ही कम हूं और कभी बोल भी देता हूं तो बाद में तुरंत कह देता हूं कि मुझे याद नहीं
भागवत....जसवंत जी कह रहे थे कि आपको सब पता था
आडवाणी....आपको पता है कि मैं अपने मस्तिष्क पर ज्यादा भार नहीं डालता इतिहास की ऐसी कई घटनाएं हैं जो मुझे स्मरण नहीं है तो बताईये मैं क्या करूं
भागवत....तो आप कहना चाह रहे हैं कि आप भुलक्कड़ हो चुके हैं
आडवाणी....देखिए भागवत जी राजनीति को दूर से देखने और राजनीति में रहकर चीजों को समझने में अंतर होता है. राजनीति में लाभ की चीजों को याद रखना पड़ता है और हानि की चीजों को भूल जाना होता है
भागवत....फिलहाल आपको अभी अभी क्या याद है
आडवाणी....यही की मैं पार्टी की ओर से प्रधानमंत्री पद का सबसे योग्य दावेदार था हूं और रहूंगा...युवा हूं...लौह पुरुष पार्ट टू भी कहें तो मुझे कोई आपत्ति नहीं है
भागवत.... अब ये भी बता दीजिए कि आपको क्या क्या स्मरण नहीं है
आडवाणी....अगर आप मुझे नेता अपोजिशन का पद छोड़ने को कहेंगे तो थोड़ी देर बार ये आदेश स्मृति से लुप्त हो जाएगा. कंधार का मामले में मुझे सब पता था ये भी मुझे याद नहीं है...बाबरी मस्जिद को मेरे सामने गिरा दिया गया था ये भी मुझे याद होगा मुझे डाउट है...यही नहीं जिन्ना के संदर्भ में पाकिस्तान में मैं क्या क्या बोलकर आया था भागवत जी आपकी कसम खाकर कहता हूं वो भी स्मृति में धुंधला सा गया है
भागवत....अच्छा आप ये तो जानते हैं कि मैं कौन हूं
आडवाणी....जी ये तो आप पर निर्भर करेगा कि मैं क्या क्या याद रखूं क्या क्या भूलूं...मसलन आप इस्तीफा देने को कहेंगे तो मैं भूल सकता हूं कि आप कौन हैं...हा हा क्या करुं कम्बख्त मस्तिष्क भी
भागवत....आप स्वयंसेवक हैं ये तो याद है ना आपको
आडवाणी....हां मेरे मित्र बताते हैं कि इलेक्शन के टाइम तक जब संघ के सहयोग की आवश्यकता थी तो मुझे स्मरण था लेकिन चुनाव के बाद मैं भुल गया...अब आप मेरे पीछे पड़ गए हैं तो याद आ रहा है कि अभी हाल में आपने स्वयंसेवक संघ की बागडोर अपने युवा हाथों में संभाली थी
भागवत....जसवंत भी आप पर तमाम आरोप लगा रहे हैं आपको नहीं लगता कि पार्टी के साथ साथ आपकी छवि भी खराब हो रही है
आडवाणी.... भागवत जी मुंह ना खुलवाएं तो अच्छा होगा
भागवत....धमकी दे रहे हैं आप आडवाणी जी
आडवाणी....नहीं भागवत जी धमकी तो मैने आजतक किसी को नहीं दी आपको स्मरण होगा जब पार्टियामेट पर पाकिस्तान ने हमला कराया था तब भी हमने पाकिस्तान को देख लेने के सिवा कुछ नहीं किया...बंदरों की तरह आक्रमण की मुद्रा तो बनाई लेकिन कोई आक्रमण नहीं किया
भागवत....बुरा मत मानिएगा ये तो आपकी पुरानी आदत है
आडवाणी....हा हा हा हा संघ से जो सिखा वो देश को अर्पण करने में जुटा हूं
भागवत.... आडवाणी जी कब से खाकी नेकर धारण नहीं की
आडवाणी....स्मरण नहीं है जहा तक मुझे याद आता है है
भागवत....रहने दीजिए याद करने की जरुरत नहीं है बीजेपी नेताओं से कहिए सप्ताह में एक दिन खाकी नेकर आनिवार्य रुप से पहनें जिससे ये स्मृति में बना रहे कि वो संघ के कार्यकर्ता पहले हैं बाद में बीजेपी के
आडवाणी....आप भी नाहक इमोशनल होते हैं हमारे शिवराजजी और नरेन्द्र मोदी तो हमेशा ही खाकी नेकर धारण करते रखते हैं...
भागवत....तो इस्तीफा कब दे रहे हैं
आडवाणी....दे दूंगा...पहले प्रधानमंत्री बन जाऊं...पांच साल के कार्यकाल के बाद तो एक बार इस्तीफा देना पड़ता है राष्ट्रपति जी को सो तभी दे दूंगा...
भागवत....(हाथ जोड़कर) आडवाणी जी माफ कीजिए...जाइए बीजेपी की निष्ठावान नेताओं की लंबी कतार है...उनसे भी मिलना है
आडवाणी....नाराज मत होइये मुझे स्मरण है कि संघ.
भागवत....बस बस रहने दीजिए...और सुनिए अगर स्मरण रख पाएं तो रखिएगा कि बाहर मीडिया वाले भूखे कुत्ते की तरह माइक लिए आपके ऊपर लपकेंगे लेकिन आप कुछ बोलिएगा नहीं..
आडवाणी....ठीक है जैसी आपकी मर्जी...

गुरुवार, 27 अगस्त 2009

क्या कह रिया है

खबर से पहले चेतावनी...
'इन खबरों
का वास्तविक घटना से कोई लेनादेना नहीं है। ये खबर डेस्क के कुछ खुराफाती लोगों की
दिमाग की उपज है।'

हमें खबर मिली है कि कसाब ने सोचना बंद कर दिया है। उसके डॉक्टरों के कहना है कि कुछ चैनल उसके सोचने से पहले ही ये सोचने लगे हैं कि वो क्या सोचने वाला है इसलिए सोचने को काम कसाब ने चैनल वालों को सौंप दिया है। अभी अभी ये भी खबर आई है कि शिल्पा शादी करने वाली हैं लेकिन हम शिल्पा के बारे में जो खुलासा करेंगे वो आपके होश उड़ा देगा। होश उड़वाने के लिए आपको करना होगा इंतजार। क्योंकि डेस्क पर कुछ लोग यू ट्यूब पर वो फुटेज सर्च करने में जुटे हैं जिससे शिल्पा को लेकर कन्फ्यूजन क्रिएट किया जा सके। फिलहाल बढ़ते हैं दूसरी बड़ी खबर की ओर। पाकिस्तान में तालिबान ने फिर से हथियार उठा लिए हैं। अभी अभी हमें यूट्यूब पर कुछ ऐसी क्लिपिंग मिली है जिससे लगता है कि कुछ लोग हाथों में हथियार लिए हैं, ये लोग किसी पहाड़ी इलाके में हैं पठानी सूट पहने हैं। हमने मान लिया है कि वो तालिबानी हैं और पाकिस्तान में ही हैं। आपको मनवाने के लिए हमारे डेस्क के कुछ सहयोगी ग्राफिक्स वालों से मदद ले रहे हैं विजुअल के घालमेल से हम पूरा माहौल बनाने की कोशिश करेंगे और पूरा यकीन दिलाने की कोशिश करेंगे, वैसे भी कौन सा तालिबान वाले हमारे ऊपर क्लेम करने आ रहे हैं। चलिए आपको दिखाते हैं मिलावट के काले कारोबारियो की वो करतूत जो आपके होश उडा देगी। वैसे होश आपके हम पहले भी उड़ाते रहे हैं लेकिन लगता है कि आप होश उड़वाने के मामले में हैव्यूचअल हो गए हैं। खैर दिल्ली में डालडा बनाने वाली फैक्ट्री का पर्दाफाश हुआ है। गिरफ्तार किया गया आरोपी खुद को पुराना टीवी जर्नलिस्ट बताता है। उसका कहना है कि वो पहले खबरों में मिलावट करता था। इन मिलावटी खबरों का कोई असर दर्शकों पर पड़ता ना देख उसने मिलावट के धंधे का एक्टेंशन किया और मिलावटी डालडा बेचने लगा। उसका कहना है कि उसका नेटवर्क नोएडा और दिल्ली के कई इलाकों में फैला है। खबर खेल की..क्रिकेट कहीं हो नहीं रहा है जो हो रहा है उसकी टीआरपी नहीं है...ऐसे मे भला हो वीरु का जो दिल्ली क्रिकेट बोर्ड से खेल रहे हैं। खेल की पिच पर उनका बखूबी साथ दे रहे हैं अरुण जेटली। माना जा रहा है कि दोनों का मैच टाई हो गया है। लेकिन हम पूरी कोशिश कर रहे हैं कि ये मैच आगे चलता रहे। इसलिए हमारे संवाददाता को नौकरी का हवाला देकर कह दिया गया है कि वो सहवाग के इंटरव्यू से कुछ कॉन्ट्रोवर्सियल हिस्से निकाले नहीं तो उसका चैनल से निकलना तय है। फिलहाल यहां वक्त हो चला है एक छोटे से ब्रेक का। ब्रेक में देखिए कि सात सौ की पेंशन पाकर बुजुर्गों ने कैसे मटकाए कुल्हे। और कौन है वो माई का लाल जो बिना खापों के इजाजत के बता रहा है हरियाणा को नंबर वन। देखते रहिए.....