कोशिशों की
छोटी छोटी कहानियों
से बनी
एक लंबी कहानी हैं
ये ब्लॉग..
इन कहानियों में
कहीं रवीश का कस्बा है
तो कहीं
प्रियदर्शन की बातें हैं...
कहीं समीर लाल हैं
तो कहीं वाह वाह करते
संजीव तिवारी के
अल्फाज़ हैं...
राजेश रोशन के सपनों
कि कहानी हैं
ये ब्लॉग....
वाकई
कोशिशों की
छोटी छोटी कहानियों
से बनी
एक लंबी कहानी हैं
ये ब्लॉग....
रितेश गुप्ता की
भावनाएं
हैं यहां....
रवीन्द्र प्रधान के
लफ्ज़ों की मिठास
है यहां...
ढाई आखर की जुबानी
है यहां...
कोशिशों की
छोटी छोटी कहानियों
से बनी
एक लंबी कहानी हैं
ये ब्लॉग..
मैने निराशा में जीना सीखा है,निराशा में भी कर्तव्यपालन सीखा है,मैं भाग्य से बंधा हुआ नहीं हूं...राममनोहर लोहिया
सोमवार, 1 अक्टूबर 2007
रविवार, 30 सितंबर 2007
आम आदमी हूं...
लोग कहते हैं कि अभी
मैं नासमझ हूं..
दुनिया देखने की
समझ नहीं हैं मुझमें...
लेकिन
मै भांप लेता हूं
लोगों के गलत
इरादे..
वायदों से आती
झूठ की बू
को पहचानता हूं मैं...
बाज़ार के समानों
में देख लेता हूं
फायदों के पनपते
अमानवीय रिश्ते को ..
पल पल मरती
अभिव्यक्ति के बीच
एक कोने की तलाश में
दिख जाते हैं
मुझे लोग
लेकिन फिर भी
लोग कहते हैं...
मैं नासमझ हूं
क्योंकि
मैं एक
आम आदमी हूं...
मैं नासमझ हूं..
दुनिया देखने की
समझ नहीं हैं मुझमें...
लेकिन
मै भांप लेता हूं
लोगों के गलत
इरादे..
वायदों से आती
झूठ की बू
को पहचानता हूं मैं...
बाज़ार के समानों
में देख लेता हूं
फायदों के पनपते
अमानवीय रिश्ते को ..
पल पल मरती
अभिव्यक्ति के बीच
एक कोने की तलाश में
दिख जाते हैं
मुझे लोग
लेकिन फिर भी
लोग कहते हैं...
मैं नासमझ हूं
क्योंकि
मैं एक
आम आदमी हूं...
शनिवार, 29 सितंबर 2007
चेहरों कि झुर्रियां
मेरे मां बाप के चेहरों
कि
झुर्रियां
अक्सर मुझे
मेरी जिम्मेदारियों का
एहसास कराती हैं..
ये झुर्रियां बयां करती हैं
उन तमाम
जिंदगी के किस्से..
जहां रिश्तों के साए
में..
दुलार और फिक्र
के बीच..
एक कोना मेरा भी है..
कि
झुर्रियां
अक्सर मुझे
मेरी जिम्मेदारियों का
एहसास कराती हैं..
ये झुर्रियां बयां करती हैं
उन तमाम
जिंदगी के किस्से..
जहां रिश्तों के साए
में..
दुलार और फिक्र
के बीच..
एक कोना मेरा भी है..
सोमवार, 17 सितंबर 2007
योग कहीं भी कभी भी
एक लंबी सांस लीजिए
थोड़ा धैर्य रखिए,
दूसरे के अपशब्दों को
उसके संस्कारों का
छिछलापन मानकर
भूल जाईये,
उनके बारे में सोचिए
जो आपको पसंद हैं,
उनकी खुशी को
महसूस करिए
जिनकी सरलता से
आपको खुशी मिलती हो,
अब सांस छोड़ दीजिए
और
खुद के अंदर छिपी
अथाह शांति को
महसूस कीजिए
थोड़ा धैर्य रखिए,
दूसरे के अपशब्दों को
उसके संस्कारों का
छिछलापन मानकर
भूल जाईये,
उनके बारे में सोचिए
जो आपको पसंद हैं,
उनकी खुशी को
महसूस करिए
जिनकी सरलता से
आपको खुशी मिलती हो,
अब सांस छोड़ दीजिए
और
खुद के अंदर छिपी
अथाह शांति को
महसूस कीजिए
रविवार, 16 सितंबर 2007
फ़िराक की याद में
(फ़िराक साहब पर बात करने से पहले उनके कुछ शब्द)
बहुत पहले से उन क़दमों की आहट जान लेते हैं
तुझे ऐ ज़िन्दगी हम दूर से पहचान लेते हैं
तबीयत अपनी घबराती है जब सुनसान रातों में
हम ऐसे में तेरी यादों की चादर तान लेते हैं
मेरी नज़रें भी ऐसे क़ातिलों का जान-ओ-ईमान है
निगाहें मिलते ही जो जान और ईमान लेते हैं
(नज़रें : eyes, glances; क़ातिल : murderer; […]
रात भी, नींद भी, कहानी भी
हाए! क्या चीज़ है जवानी भी
दिल को शोलों से करती है सैलाब
ज़िन्दगी आग भी है, पानी भी
हर्फ क्या क्या मुझे नहीं कहती
कुछ सुनूँ मैं तेरी ज़ुबानी भी
पास रहना किसी का रात की रात
मेहमानी भी, मेज़बानी भी
(मेहमानी : to visit as a guest; […]
(हर्फ : words) (शोला : fire ball; सैलाब : flood)
बहुत पहले से उन क़दमों की आहट जान लेते हैं
तुझे ऐ ज़िन्दगी हम दूर से पहचान लेते हैं
तबीयत अपनी घबराती है जब सुनसान रातों में
हम ऐसे में तेरी यादों की चादर तान लेते हैं
मेरी नज़रें भी ऐसे क़ातिलों का जान-ओ-ईमान है
निगाहें मिलते ही जो जान और ईमान लेते हैं
(नज़रें : eyes, glances; क़ातिल : murderer; […]
रात भी, नींद भी, कहानी भी
हाए! क्या चीज़ है जवानी भी
दिल को शोलों से करती है सैलाब
ज़िन्दगी आग भी है, पानी भी
हर्फ क्या क्या मुझे नहीं कहती
कुछ सुनूँ मैं तेरी ज़ुबानी भी
पास रहना किसी का रात की रात
मेहमानी भी, मेज़बानी भी
(मेहमानी : to visit as a guest; […]
(हर्फ : words) (शोला : fire ball; सैलाब : flood)
रविवार, 2 सितंबर 2007
फायदे का एहसास
शहर में फायदों की बातें
बहुत सुनी हैं
लेकिन,
इन फायदों के बीच
नुकसान का एहसास
सबको है,
शहर की भीड़ में
खो जाने का एहसास
सबको है,
बाजार के बीच
ठगे जाने का एहसास
सबको है,
भागती सड़क पर
कुचलने का एहसास
सबको है,
फैशन के नये दौर में
पुराने हो जाने का एहसास
सबको है,
शहर में फायदों की बातें
बहुत सुनी हैं
लेकिन,
फायदों के बीच
अपनो से बिछड़ने का एहसास
सबको है
बहुत सुनी हैं
लेकिन,
इन फायदों के बीच
नुकसान का एहसास
सबको है,
शहर की भीड़ में
खो जाने का एहसास
सबको है,
बाजार के बीच
ठगे जाने का एहसास
सबको है,
भागती सड़क पर
कुचलने का एहसास
सबको है,
फैशन के नये दौर में
पुराने हो जाने का एहसास
सबको है,
शहर में फायदों की बातें
बहुत सुनी हैं
लेकिन,
फायदों के बीच
अपनो से बिछड़ने का एहसास
सबको है
दहशतगर्द
उन्हें नहीं मालूम थे
तुम्हारे इरादे,
वो नहीं जानते थे
कि
तुम्हारी दुश्मनी
किससे है,
वो जानना भी नहीं चाहते थे
कि तुम ऐसे क्यों हो
लेकिन
फिर भी
तुमने उन्हे मार दिया
और
बता दिया
कि
तुम कायर हो
तुम्हारा
कोई भगवान नहीं
तुम्हारा
कोई अल्लाह नहीं
तुम कायरता की बैशाखी
पर
चलने वाले दहशतगर्द हो
(शनिवार,२५ अगस्त को हैदराबाद में बम धमाकों में तमाम मौतों के बाद लिखी कविता,ये शहर मेरे काफी करीब है,शायद अपने लखनऊ से भी ज्यादा)
तुम्हारे इरादे,
वो नहीं जानते थे
कि
तुम्हारी दुश्मनी
किससे है,
वो जानना भी नहीं चाहते थे
कि तुम ऐसे क्यों हो
लेकिन
फिर भी
तुमने उन्हे मार दिया
और
बता दिया
कि
तुम कायर हो
तुम्हारा
कोई भगवान नहीं
तुम्हारा
कोई अल्लाह नहीं
तुम कायरता की बैशाखी
पर
चलने वाले दहशतगर्द हो
(शनिवार,२५ अगस्त को हैदराबाद में बम धमाकों में तमाम मौतों के बाद लिखी कविता,ये शहर मेरे काफी करीब है,शायद अपने लखनऊ से भी ज्यादा)
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