वक्त के बीते पन्ने
कुछ पीले पड़ने लगे हैं...
यादों की तमाम तहें
घुन सी गई हैं...
वक्त की सीलन
यादों में गहरे तक उतर आई है...
जिंदगी रस्सी के उन सिरों की तरह लगती है
जो उलझे भी हैं
और उलझे मालूम भी नहीं पड़ते...
वक्त रेत की तरह
मुट्ठी से फिसलता जा रहा है...
उलझन साए सी
जिंदगी के पीछे पड़ गई है...
हवाओं में हर ओर
साजिश की बू आती है
हर रास्ता अजनबी सा लगता है...
बार बार अपने अंदर का भरोसा
कड़वी हकीकत चखकर
तीखा हो जाता है...
लेकिन जेहन के एक कोने में पड़ा
उम्मीद का मीठा टुकड़ा...
बार बार यादों में घुलता है...
यादें फिर से उम्मीद की करवट होकर
समेटने लगती हैं
यादों के पीले पन्नों को...
मैने निराशा में जीना सीखा है,निराशा में भी कर्तव्यपालन सीखा है,मैं भाग्य से बंधा हुआ नहीं हूं...राममनोहर लोहिया
मंगलवार, 7 अक्टूबर 2008
गुरुवार, 2 अक्टूबर 2008
कमरे में बसी यादें

मेरे घर के ऊपर के कमरे में
अब कोई नहीं रहता
उसकी जुबान
अक्सर ताले में बंद रहती है
कमरे की सूरत
कुछ कबाड़खाने सी हो गई है
जिसमें अखबार की पुरानी कतरन जमा है
धूल की मोटी परत से
उस पर लिखे शब्द बेमानी से हो गए हैं
अखबार के तमाम फटे पन्नों से
अभी भी मुद्दों की आवाजें आती हैं
वो कुछ बोलना चाहते हैं
लेकिन उनकी आवाजें
बार बार खामोशी में घुल जाती हैं
कमरे में लगी पुरानी सीनरी
अब बहुत पुरानी हो गई है
धूल की परत उसकी बर्फ पर भी जमा है
उसे साफ करने
कमरे में कोई नहीं जाता
केवल उन समानों के सिवा
जिनके लिए अब घर में जगह नहीं है
मेरा कमरा कुछ कुछ
मेरी यादों की तरह है
जिसकी दहलीज पुरानी यादों की दस्तक
सुनने के लिए बेचैन है
गुरुवार, 14 अगस्त 2008
खुशी है छलक ही आती है
शुक्रवार, 1 अगस्त 2008
माफ़ करना बाबूजी पार्ट २

वो दिन उसे आज भी याद थे... जब उसने दिल्ली में कदम रखा था... बाबूजी की ही जिद थी कि उनका लड़का जेएनयू में पढ़े... इत्तेफाक से जेएनयू में ही एडमिशन मिल गया... उस वक्त पढ़ाई के साथ साथ थियेटर और जन आंदोलन में हिस्सा लेना... उसका डेली का रुटीन था...गांव से दूर वो गोर्की के उपन्यासों में अपनी मां को खोजता रहता... उसे अक्सर अपनी मां याद आती...गांव की भोली भाली महिला...जिसके लिए पति के क्रांतिकारी विचार सनक और फिजूल की जिद भर थे...पति के विचारों से उन्हें कभी इत्तेफाक नहीं रहा...लेकिन पति के विचारों का सम्मान उन्होने हमेशा किया... साड़ी के तोहफे भर से खुश हो जाने वाली उसकी मां की आंखे भले आज धुंधला गई थी...लेकिन अपनी मां की तमाम यादें वो अपने साथ दिल्ली ले आया था...और वो नाम भी जो बड़े प्यार से उसकी मां से उसे दिया था...रवीश..
दिल्ली को उसने जेएनयू के क्रांतिकारी नजरिए से देखा... कार के शीशों से झांकती दिल्ली की जिंदगी उसे कभी पसंद नहीं आई... लेकिन जेएनयू कैम्पस में उसके लिए काफी कुछ था... यहां विचारों की वो जमीन थी...जो उसे अपने बाबूजी से मिली थी...जल्दी ही वो कॉलेज के वामपंथी स्टूडेंट पार्टी का मेंबर बन गया... वहीं एसएफआई के विरोध प्रदर्शन के दौरान उसकी मुलाकात मालविका से हुई थी....मालविका पोलिटिकल साइंस की स्टूडेंट थी...रुसो से लेकर मार्क्स तक गहरी समझ रखने वाली एक क्रांतिकारी लड़की....विरोध प्रदर्शनों और सेमीनारों में उसने कई बार मालविका को बोलते सुना था... उसके लिए मालविका अबूझ पहेली की तरह थी...कम लेकिन खरा बोलने वाली ...मालविका उसे प्रेमचंद के उपन्यास रंगभूमि की सोफिया की तरह लगती...गरीबों और मजदूरों की लड़ाई को लेकर उसने मालविका को कई बार भावुक होते देखा था... मालविका के इसी जूनून को देखकर उसने समझ लिया था कि उसकी प्राथमिकताएं गरीबों और मजदूरों के हक की लड़ाई से शुरु होती है...और वहीं खत्म होती हैं... उस लड़की में एक अजीब सा आकर्षण था...वो एक ऐसी लड़की थी... जिसके मकसद साफ थे...पिता आईएएस अफसर थे... लेकिन फिर भी वो बस से ही कॉलेज आती थी...पिता की अफसरनुमा जीवनशैली उसे कभी पसंद नहीं आई... घर के लिए मालविका एक विद्रोही लड़की थी...और रवीश के लिए उसकी जिंदगी का मकसद...मालविका की तरफ उसका खिंचाव लगातार बढ़ रहा था... विचारों की जिस दुनिया में मालविका रहा करती थी... वो दुनिया रवीश को विरासत में मिली थी... बाबूजी की दुनिया भी मार्क्स और लेनिन के इर्द गिर्द घूमती थी... वो दुनिया को बदलते देखना चाहते थे...वो चाहते थे कि मजदूरी के पसीने की सही कीमत लगाई जाए... मालविका के विचारों में रवीश को अपने बाबू जी नजर आते थे...और इसलिए मालविका का आकर्षण उसके लिए कई गुना बढ़ चुका था...( आगे जारी )
गुरुवार, 31 जुलाई 2008
बस यूं ही
रविवार, 6 जुलाई 2008
लादेन सही तो बुश कहां से गलत...

ये सच है मैने कुछ दिनों से ब्लॉग पर बहुत कुछ नहीं लिखा... जो लिखा साभार लिखा... दरअसल मेरे ख्याल से लिखना तभी चाहिए...जब आप लिखे को अपने अंदर पका लें... जो लिखे वो तर्कसंगत हो...बचकाना ना लगे...पहले पढ़ें फिर अपनी सोच बनाएं...लिखना तो बहुत बाद की बात है...मुझे लगता है मेरे जैसे युवा जिनके अभी तीस के होने में वक्त है... उन्हें बोलने और लिखने से ज्यादा फिलहाल सोचने और पढ़ने लिखने की जरुरत है... और शायद साभार लेखों के जरिए मैने यही कोशिश की है... पाकिस्तान में एक मुस्लिम के मंदिर को बचाने की जंग की कहानी इसी का हिस्सा थी... लेकिन इस लेख पर जो कमेंट आया... वो चौंकाने वाला तो नहीं था...लेकिन अफसोस लायक जरुर था... बंटवारे से लेकर आजतक मुसलमानों को लेकर जो कहा या सुना जा रहा है... उसे लेकर एक आम छिछलापन पूरी सोसायटी में दिखता है... और शायद इसीलिए पाकिस्तान की खुशहाली की बात करने वाला कोई भी इंसान हमारा दुश्मन हो जाता है... और हम बंटवारे और आतंकवाद के लिए उसे ही जिम्मेदार मान बैठते हैं... लेकिन सवाल इससे भी ज्यादा आगे जाते हैं... अगर प्रवीण तोगड़िया या बजरंग दल ठीक हैं तो लादेन कहां से गलत है....अगर सद्दाम सही था तो आप बुश को कहां से गलत कह सकते हैं....दरअसल एक कट्टरता को सही ठहराने की कोशिश में हम दूसरे की अतिवादिता को जाने अनजाने सही ठहरा देते हैं...यहीं से गलती शुरु हो जाती है... हमे समझना चाहिए कि एक की कट्टरता को सही साबित कर दूसरे की कट्टर सोच को गलत कैसे ठहराया जा सकता है...मसलन लादेन को गलत ठहराकर ही आप बुश को गलत साबित कर सकते हैं...जहां तक बात बंटवारे की है... उसके लिए कौन जिम्मेदार है...इस पर बहस काफी पुरानी है...लेकिन मुझे लगता है कि इतिहास को उस वक्त के हालात के बिना ना तो समझा जा सकता है...और ना ही बयां किया जा सकता है...
शुक्रवार, 4 जुलाई 2008
इसे तोगड़ियाछाप लोग ना पढ़े..

( हिन्दुस्तान की सेकुलर छवि... और पाकिस्तान को लेकर नफरत की आग के बीच... ये विहिप और तोगड़िया को करारा जबाब देती खबर है... हिन्दुस्तान में बाबरी मस्जिद को गिराना भले विहिप और बजरंग दल के लिए गौरव की बात हो...लेकिन पाकिस्तान में एक मुस्लिम मंदिर को बचाने की लड़ाई लड़ रहा है... ये ख़बर इंसानियत औऱ धर्म के ऐसे दुश्मनों के लिए सबक से कम नहीं है...ये ख़बर http://www.hindimedia.in/से साभार ली गई है... आप इस खबर को देखने के लिए सीधे इस लिंक पर भी जा सकते हैं..http://www.hindimedia.in/content/view/2636/134/)
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पाकिस्तान के लाहौर में एक मुसलमान वहाँ पाकिस्तानी सरकार द्वारा गिरा दिए गए एक मंदिर को फिर से बनाने के लिए लड़ाई लड़ रहा है। चौधरी रहमत अली गुज्जर अपनी यह जंग अकेला ही ल़ रहा है, 1947 में भारत के बँटवारे के समय उसके पिता को पाकिस्तानी सरकार और पाकिस्तानी मुसलमानों ने मंदिर और हिंदुस्तानियों को बचाने के ‘अपराध’ में जेल में डाल दिया था और उनको इतनी यातना दी गई कि जेल में ही उनकी मौत हो गई। बाबरी मस्जिद विवाद के दौरान लाहौर में ही नहीं बल्कि पाकिस्तान में अलग-अलग शहरों में मौजूद कई मंदिरों को तोड़ दिया गया था। लेकिन लाहौर के बाबा माहर दास मंदिर को गिराने पहुँचे दंगाइयों को चौधरी रहमत अली ने अपने साथियों की मदद वहाँ से खदेड़ दिया था, तब तो चौधरी ने मंदिर को बचा लिया, मगर पाकिस्तान के कट्टरपंथी मुसलमानों को यह मंदिर खटकने लगा था। पाकिस्तान में स्थित हिन्दू मंदिरों के लिए शोध कर रहे इतिहासकार सुरेन्द्र कोचर अपनी शोध के सिलसिले में कई बार पाकिस्तान जा चुके हैं। जब उनकी मुलाकात इस पाकिस्तानी युवक से हुई तो उसने कहा कि हमारे घर और हवेली पर माँ साहिब (मां शेरां वाली) का पहरा है। माँ शेरावाली, भगवान कृष्ण और गुरुनानक देव जी हमारे सांझा पैगंबर हैं।लाहौर वच्छूवाली मोहल्ले में स्थित 325 साल पुराना बाबा मेहरदास का यह मंदिर 9 मार्च 2006 को कट्टरपंथी मुसलमानों ने हिंदुओं की संपत्ति के रखरखाव के लिए बने सरकारी विस्थापक ट्रस्ट संपत्ति (इवैक्यू ट्रस्ट प्रापर्टी) बोर्ड की मिलीभगत से गिरा दिया था। 28 मई 2006 को डॉन अखबार में खबर छपी कि व्यापारिक स्थल बनाने के लिए मंदिर गिरा दिया गया। इन मंदिरों की जमीन पर लाहौर के एक बिल्डर की निगाहें लगी हुई थी। बिल्डर ख्वाजा सुहैल नसीम ने स्थानीय प्रशासन और पाकिस्तान के पुरातत्व विभाग से मिलीभगत कर कर मंदिर वाली जगह पर पाँच मंजिली प्लाजा बनाने की योजना बना ली। एक रात ख्वाजा सुहैल अपने गुर्गों, खुफिया एजेसियों और फौजी अधिकारियों को लेकर आया और चौधरी को उसके ही घर में नजरबंद करके मंदिर को गिरा दिया। वच्छूवाली विभाजन के पहले अमीर हिन्दुओं की बस्ती थी और उन लोगों ने ही यहाँ कई मंदिर भी बनवाए थे। पाकिस्तान के कट्टरपंथी मुसलमानों ने पाकिस्तान सरकार की मौन स्वीकृति से इन सभी मंदिरों को नष्ट कर दिया। इन मंदिरों में 1680 में बने मंदिर बाबा माहर दास का विशेष महत्व था। इसके प्रवेश द्वार पर हनुमान जी की मूर्ति थी। अंदर राधा-कृष्ण और राम दरबार की मूर्तियाँ थीं, और इन मूर्तियों पर करोड़ों रुपेय की कीमत के कीमती आभूषण थे।
इससे संबंधित खबरें पाकिस्तान के अंग्रेजी अखबार ने प्रमुखता से प्रकाशित की है। उनकी लिंक यहाँ उपलब्ध है।
http://www.dawn.com/2006/05/28/nat23.htm
http://www.dawn.com/2006/06/13/nat16.htm
http://www.shaivam.org/siddhanta/toi_pakistan.htm
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साभार....http://www.hindimedia.in/
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पाकिस्तान के लाहौर में एक मुसलमान वहाँ पाकिस्तानी सरकार द्वारा गिरा दिए गए एक मंदिर को फिर से बनाने के लिए लड़ाई लड़ रहा है। चौधरी रहमत अली गुज्जर अपनी यह जंग अकेला ही ल़ रहा है, 1947 में भारत के बँटवारे के समय उसके पिता को पाकिस्तानी सरकार और पाकिस्तानी मुसलमानों ने मंदिर और हिंदुस्तानियों को बचाने के ‘अपराध’ में जेल में डाल दिया था और उनको इतनी यातना दी गई कि जेल में ही उनकी मौत हो गई। बाबरी मस्जिद विवाद के दौरान लाहौर में ही नहीं बल्कि पाकिस्तान में अलग-अलग शहरों में मौजूद कई मंदिरों को तोड़ दिया गया था। लेकिन लाहौर के बाबा माहर दास मंदिर को गिराने पहुँचे दंगाइयों को चौधरी रहमत अली ने अपने साथियों की मदद वहाँ से खदेड़ दिया था, तब तो चौधरी ने मंदिर को बचा लिया, मगर पाकिस्तान के कट्टरपंथी मुसलमानों को यह मंदिर खटकने लगा था। पाकिस्तान में स्थित हिन्दू मंदिरों के लिए शोध कर रहे इतिहासकार सुरेन्द्र कोचर अपनी शोध के सिलसिले में कई बार पाकिस्तान जा चुके हैं। जब उनकी मुलाकात इस पाकिस्तानी युवक से हुई तो उसने कहा कि हमारे घर और हवेली पर माँ साहिब (मां शेरां वाली) का पहरा है। माँ शेरावाली, भगवान कृष्ण और गुरुनानक देव जी हमारे सांझा पैगंबर हैं।लाहौर वच्छूवाली मोहल्ले में स्थित 325 साल पुराना बाबा मेहरदास का यह मंदिर 9 मार्च 2006 को कट्टरपंथी मुसलमानों ने हिंदुओं की संपत्ति के रखरखाव के लिए बने सरकारी विस्थापक ट्रस्ट संपत्ति (इवैक्यू ट्रस्ट प्रापर्टी) बोर्ड की मिलीभगत से गिरा दिया था। 28 मई 2006 को डॉन अखबार में खबर छपी कि व्यापारिक स्थल बनाने के लिए मंदिर गिरा दिया गया। इन मंदिरों की जमीन पर लाहौर के एक बिल्डर की निगाहें लगी हुई थी। बिल्डर ख्वाजा सुहैल नसीम ने स्थानीय प्रशासन और पाकिस्तान के पुरातत्व विभाग से मिलीभगत कर कर मंदिर वाली जगह पर पाँच मंजिली प्लाजा बनाने की योजना बना ली। एक रात ख्वाजा सुहैल अपने गुर्गों, खुफिया एजेसियों और फौजी अधिकारियों को लेकर आया और चौधरी को उसके ही घर में नजरबंद करके मंदिर को गिरा दिया। वच्छूवाली विभाजन के पहले अमीर हिन्दुओं की बस्ती थी और उन लोगों ने ही यहाँ कई मंदिर भी बनवाए थे। पाकिस्तान के कट्टरपंथी मुसलमानों ने पाकिस्तान सरकार की मौन स्वीकृति से इन सभी मंदिरों को नष्ट कर दिया। इन मंदिरों में 1680 में बने मंदिर बाबा माहर दास का विशेष महत्व था। इसके प्रवेश द्वार पर हनुमान जी की मूर्ति थी। अंदर राधा-कृष्ण और राम दरबार की मूर्तियाँ थीं, और इन मूर्तियों पर करोड़ों रुपेय की कीमत के कीमती आभूषण थे।
इससे संबंधित खबरें पाकिस्तान के अंग्रेजी अखबार ने प्रमुखता से प्रकाशित की है। उनकी लिंक यहाँ उपलब्ध है।
http://www.dawn.com/2006/05/28/nat23.htm
http://www.dawn.com/2006/06/13/nat16.htm
http://www.shaivam.org/siddhanta/toi_pakistan.htm
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