मेरे मां बाप के चेहरों
कि
झुर्रियां
अक्सर मुझे
मेरी जिम्मेदारियों का
एहसास कराती हैं..
ये झुर्रियां बयां करती हैं
उन तमाम
जिंदगी के किस्से..
जहां रिश्तों के साए
में..
दुलार और फिक्र
के बीच..
एक कोना मेरा भी है..
मैने निराशा में जीना सीखा है,निराशा में भी कर्तव्यपालन सीखा है,मैं भाग्य से बंधा हुआ नहीं हूं...राममनोहर लोहिया
शनिवार, 29 सितंबर 2007
सोमवार, 17 सितंबर 2007
योग कहीं भी कभी भी
एक लंबी सांस लीजिए
थोड़ा धैर्य रखिए,
दूसरे के अपशब्दों को
उसके संस्कारों का
छिछलापन मानकर
भूल जाईये,
उनके बारे में सोचिए
जो आपको पसंद हैं,
उनकी खुशी को
महसूस करिए
जिनकी सरलता से
आपको खुशी मिलती हो,
अब सांस छोड़ दीजिए
और
खुद के अंदर छिपी
अथाह शांति को
महसूस कीजिए
थोड़ा धैर्य रखिए,
दूसरे के अपशब्दों को
उसके संस्कारों का
छिछलापन मानकर
भूल जाईये,
उनके बारे में सोचिए
जो आपको पसंद हैं,
उनकी खुशी को
महसूस करिए
जिनकी सरलता से
आपको खुशी मिलती हो,
अब सांस छोड़ दीजिए
और
खुद के अंदर छिपी
अथाह शांति को
महसूस कीजिए
रविवार, 16 सितंबर 2007
फ़िराक की याद में
(फ़िराक साहब पर बात करने से पहले उनके कुछ शब्द)
बहुत पहले से उन क़दमों की आहट जान लेते हैं
तुझे ऐ ज़िन्दगी हम दूर से पहचान लेते हैं
तबीयत अपनी घबराती है जब सुनसान रातों में
हम ऐसे में तेरी यादों की चादर तान लेते हैं
मेरी नज़रें भी ऐसे क़ातिलों का जान-ओ-ईमान है
निगाहें मिलते ही जो जान और ईमान लेते हैं
(नज़रें : eyes, glances; क़ातिल : murderer; […]
रात भी, नींद भी, कहानी भी
हाए! क्या चीज़ है जवानी भी
दिल को शोलों से करती है सैलाब
ज़िन्दगी आग भी है, पानी भी
हर्फ क्या क्या मुझे नहीं कहती
कुछ सुनूँ मैं तेरी ज़ुबानी भी
पास रहना किसी का रात की रात
मेहमानी भी, मेज़बानी भी
(मेहमानी : to visit as a guest; […]
(हर्फ : words) (शोला : fire ball; सैलाब : flood)
बहुत पहले से उन क़दमों की आहट जान लेते हैं
तुझे ऐ ज़िन्दगी हम दूर से पहचान लेते हैं
तबीयत अपनी घबराती है जब सुनसान रातों में
हम ऐसे में तेरी यादों की चादर तान लेते हैं
मेरी नज़रें भी ऐसे क़ातिलों का जान-ओ-ईमान है
निगाहें मिलते ही जो जान और ईमान लेते हैं
(नज़रें : eyes, glances; क़ातिल : murderer; […]
रात भी, नींद भी, कहानी भी
हाए! क्या चीज़ है जवानी भी
दिल को शोलों से करती है सैलाब
ज़िन्दगी आग भी है, पानी भी
हर्फ क्या क्या मुझे नहीं कहती
कुछ सुनूँ मैं तेरी ज़ुबानी भी
पास रहना किसी का रात की रात
मेहमानी भी, मेज़बानी भी
(मेहमानी : to visit as a guest; […]
(हर्फ : words) (शोला : fire ball; सैलाब : flood)
रविवार, 2 सितंबर 2007
फायदे का एहसास
शहर में फायदों की बातें
बहुत सुनी हैं
लेकिन,
इन फायदों के बीच
नुकसान का एहसास
सबको है,
शहर की भीड़ में
खो जाने का एहसास
सबको है,
बाजार के बीच
ठगे जाने का एहसास
सबको है,
भागती सड़क पर
कुचलने का एहसास
सबको है,
फैशन के नये दौर में
पुराने हो जाने का एहसास
सबको है,
शहर में फायदों की बातें
बहुत सुनी हैं
लेकिन,
फायदों के बीच
अपनो से बिछड़ने का एहसास
सबको है
बहुत सुनी हैं
लेकिन,
इन फायदों के बीच
नुकसान का एहसास
सबको है,
शहर की भीड़ में
खो जाने का एहसास
सबको है,
बाजार के बीच
ठगे जाने का एहसास
सबको है,
भागती सड़क पर
कुचलने का एहसास
सबको है,
फैशन के नये दौर में
पुराने हो जाने का एहसास
सबको है,
शहर में फायदों की बातें
बहुत सुनी हैं
लेकिन,
फायदों के बीच
अपनो से बिछड़ने का एहसास
सबको है
दहशतगर्द
उन्हें नहीं मालूम थे
तुम्हारे इरादे,
वो नहीं जानते थे
कि
तुम्हारी दुश्मनी
किससे है,
वो जानना भी नहीं चाहते थे
कि तुम ऐसे क्यों हो
लेकिन
फिर भी
तुमने उन्हे मार दिया
और
बता दिया
कि
तुम कायर हो
तुम्हारा
कोई भगवान नहीं
तुम्हारा
कोई अल्लाह नहीं
तुम कायरता की बैशाखी
पर
चलने वाले दहशतगर्द हो
(शनिवार,२५ अगस्त को हैदराबाद में बम धमाकों में तमाम मौतों के बाद लिखी कविता,ये शहर मेरे काफी करीब है,शायद अपने लखनऊ से भी ज्यादा)
तुम्हारे इरादे,
वो नहीं जानते थे
कि
तुम्हारी दुश्मनी
किससे है,
वो जानना भी नहीं चाहते थे
कि तुम ऐसे क्यों हो
लेकिन
फिर भी
तुमने उन्हे मार दिया
और
बता दिया
कि
तुम कायर हो
तुम्हारा
कोई भगवान नहीं
तुम्हारा
कोई अल्लाह नहीं
तुम कायरता की बैशाखी
पर
चलने वाले दहशतगर्द हो
(शनिवार,२५ अगस्त को हैदराबाद में बम धमाकों में तमाम मौतों के बाद लिखी कविता,ये शहर मेरे काफी करीब है,शायद अपने लखनऊ से भी ज्यादा)
शनिवार, 25 अगस्त 2007
वक्त
वक्त
हाथों से
फिसलता है
रेत की तरह
कोई करता है
उसे थामने की
कोशिश
तो कोई
खोल देता है
अपनी मुट्ठी
और
यहीं बदल जाती है
वक्त की पहचान
जिंदगी और मौत में
हाथों से
फिसलता है
रेत की तरह
कोई करता है
उसे थामने की
कोशिश
तो कोई
खोल देता है
अपनी मुट्ठी
और
यहीं बदल जाती है
वक्त की पहचान
जिंदगी और मौत में
शनिवार, 11 अगस्त 2007
खामोशी
एक शाम बातें कर रही थी
आने वाली रात से
जाने वाले दिन से
अंधेरा बार बार डराता था
वो बयां करता था
रात की वीरानी को
वो सुनाता था भटके
मुसाफिरों के किस्से
जब उजाले की बारी आयी
तो वो कुछ नहीं बोला
शाम समझ गयी
इस खामोशी का इशारा
कि
उसे भी पार करनी है
ये रात
खामोशी के साथ
आने वाली रात से
जाने वाले दिन से
अंधेरा बार बार डराता था
वो बयां करता था
रात की वीरानी को
वो सुनाता था भटके
मुसाफिरों के किस्से
जब उजाले की बारी आयी
तो वो कुछ नहीं बोला
शाम समझ गयी
इस खामोशी का इशारा
कि
उसे भी पार करनी है
ये रात
खामोशी के साथ
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