शनिवार, 25 अगस्त 2007

वक्त

वक्त
हाथों से
फिसलता है
रेत की तरह
कोई करता है
उसे थामने की
कोशिश
तो कोई
खोल देता है
अपनी मुट्ठी
और
यहीं बदल जाती है
वक्त की पहचान
जिंदगी और मौत में