शनिवार, 18 जुलाई 2009

सच का सामना


टीवी चैनल पर मनोरंजन का जायका बदल रहा है। सास बहू और कॉमेडी के दौर से चैनल रियलिटी के मैदान में आ चुके हैं। अब रियल और रियल होने जा रहा है। सामना सच से है और निशाना टीआरपी है। दरअसल आश्चर्य ने हमेशा इंसान को नई खोज के लिए प्रेरित किया, और जब ये प्रेरणा आश्चर्य के रहस्योघाटन तक पहुंची तो साइंस के दायरे में आ गई, सच खोजने का यही तरीका इंसान को पहले से बड़ा इंसान बनाता रहा। लेकिन उलझनें फिर भी बनी रहीं। पाप पुण्य से लेकर सच और झूठ की दुनिया में मनुष्य का भटकाव जारी रहा। सच की खोज में लाखों साधु हो गए तो हजारों पागल हो गए, लेकिन पूरा सच किसी के हाथ नहीं लगा। आखिर मान लिया गया कि सच ही भगवान है सच ही खुदा है। बावजूद इसके सच खुलासों की मांग करता रहा। लेकिन अब सच का सामना टीवी पर हो रहा है। शो में पूछे जाने वाले सवाल निहायत व्यक्तिगत हैं। एक करोड़ के लिए बोला जाने वाला सच बेशकिमती रिश्तों पर भारी पड़ रहा है। एक करोड़ में सच बाजार में खड़ा है। और इस बाजार में निजता की कीमत तय की जा चुकी है। दरअसल जिंदगी झूठ और सच के तजुर्बों से मिलजुल कर बनती है। सच अगर चीनी है तो झूठ नमक। फिर भी यही कहूंगा कि सत्य की खोज जारी रहनी चाहिए। गांधी के सत्य के प्रयोग उनके साथ भले खत्म हो गए हों। लेकिन ये प्रयोग आम लोगों की जिंदगी में जारी रहते तो सच आज कुछ और होता।