रविवार, 6 अप्रैल 2008

जाति के सवाल पर गुत्थमगुत्था

पिछले दिनों रवीश जी के कस्बे में खूब हंगामा मचा..बहस जाति को लेकर छिड़ी...तो कुछ लोगों का खून खौल गया...रवीश की मंशा पर सवालिया निशान लगाए गए...साबित करने की कोशिश शुरु हो गई कि जब रवीश की सोच में खुद खोट है...तो वो जाति का सवाल क्यों उठा रहे हैं...मामला जान से मारने की धमकी तक पहुंच गया...दरअसल जाति का सवाल केवल बिहारियों से जुड़ा नहीं है....ये सवाल हमारी मानसिकता से जुड़ा है....और उतना ही उस माहौल से जहां बार बार हमारी जाति का एहसास कराया जाता है...मेरी जाति क्या है ये सवाल सबसे पहले मुझसे मेरे उस दोस्त ने पूछा....जिसका तालुल्क मोतीहारी से था...जब मैने सवाल टालने की कोशिश की...तो मेरी जाति की छानबीन के लिए मेरे कैरेक्टर का विश्लेषण तक कर डाला गया....बाद में जाति पर कलंक की श्रेणी में डालकर मेरा खूब प्रचार प्रसार किया गया...लेकिन सच बताऊं मुझे ना तो गुस्सा आया और ना ही मैने कभी इस बात की शिकायत की...लेकिन इस पूरे अनुभव से मैने बिहारियो के बारे में एक पूर्वाग्रह जरुर गढ़ लिया कि...बिहार के लोग आपको जानने से ज्यादा आपकी जाति जानने में दिलचस्पी रखते हैं...इस दौरान मुझे खुद को जाति के जाल से निकलने का मौका जरुर मिल गया...सबसे पहले अपने नाम के आगे से जाति का पोस्टर हटाया..और जता दिया कि मेरे खून का ब्वॉयलिग प्वाइंट इतना भी कम नहीं कि जाति के नाम पर खौल उठे...ये सब इसलिए लिख रहा हूं कि रवीश के ब्लॉग पर जाति की बहस मरने मारने तक जा पहुंची है...दरअसल पूरे मामले में गलती किसकी है...जाति को जहर मानकर उस पर कुछ गंभीर चिंतन करने वाले की...या फिर किसी के विचार को अपनी जाति पर हमला समझकर व्यक्तिगत छिंटाकशी करने वाले की..जहां तक मुझे लगता है अगर आपको जाति से लडना है तो पहले खुद से लडना होगा...जाति के पूर्वाग्रह से हम सब ग्रस्त हैं...वो भी जो जाति को स्वाभिमान से जोड़ते हैं...और वो भी जो जाति के विरोध मे अपनी आवाजें बार बार बुलंद करते रहते हैं....