सोमवार, 10 मई 2010

यूपीएससी इंतहान और कुछ सुलगते सवाल


अधिकारी तबका अंग्रेजियत से उबर नहीं पाया हैं। शायद इसलिए कि हुक्म चलाना हमारी आदत है। यूपीएससी के इंतहान में पास उम्मीदवारों के इंटरव्यू से जो टीस उठी उससे उठे तमाम सवालों को ब्ल़ॉग पर साझा करने की कोशिश की। जिस तरह हर मसले के कई पहलू होते हैं इस मसले को देखने के भी कई नजरिए हैं और हर नजरिया दूसरे नजरिए के बिना पूरा नहीं है। अतुल भाई पिछले आर्टिकिल से पूरी तरह असहमत दिखे। लंबा चौड़ा लेख लिख मारा।

चिंता वाकई बड़ी है, लेकिन जिस तरह से की जा रही है उस हिसाब से तो इंसान का जीना ही दुभर हो जाएगा। केवल यूपीएससी ही क्यों, देश की कोई एक परीक्षा बता दीजिए जिसमें लोग असफल नहीं होते। यह तो होता ही है कि सफल लोगों की तुलना में असफल ज्यादा होते हैं। जिंदगी के हर मुकाम में असफल लोगों की तादात सफल लोगों से बहुत ज्यादा है। अब आप ही बताइए कि सरकार किस किस का रिसर्च करे। खैर हम सभी आजाद हैं और हमारी जिस अभिव्यक्ति से किसी को कोई नुकसान न हो, इतना तो हक है ही हमें। शायद इसीलिए आपने सरकार को नसीहत दी है, लेकिन मैं कुछ सुझाव देने की हिमाकत कर रहा हूं...गौर फरमाइएगा...मेरा मानना है कि क्या हो रहा है इस पर मगजमारी करने से ज्यादा बेहतर है कि क्या बेहतर हो सकता है इस पर विचार किया जाए। देश में नरेगा (माफ कीजिएगा मनरेगा)का मकसद कुछ ही दिन सही पर रोजगार की गारंटी देना है। अगर ऐसा ही यूपीएससी समेत सभी परीक्षाओं में हो तो हालात कुछ सुधर सकते हैं...और हर किसी को उसकी काबिलियत के हिसाब से काम भी मिल सकता है। अब क्रिकेट को ही देखिए देश में स्कूल कॉलेज की टीम से लेकर स्टेट टीम तक लाखों लोग उस अंतिम ग्यारह में जगह बनाने की कोशिश करते हैं, जो देश के लिए खेलती है। अफसोस की कामयाब सिर्फ ग्यारह को ही मिलती है। लेकिन आईपीएल ने एक नई दिशा दी है और इंडियन टीम की ग्यारह में शामिल होने वाले अगर उसमें शामिल नहीं हो पाते, तो उनके पास शोहरत और पैसा कमाने के लिए आईपीएल का दरवाजा खुला है। अगर कुछ ऐसा ही यूपीएससी में भी हो तो असफल लोगों पर रिसर्च करने की ज्यादा जरूरत महसूस नहीं होगी। मेरे पास एक फार्मूला है...
1. यूपीएससी के लिए परीक्षा देने वाले लोगों में से कोई भी अगर लगातार दो प्री इक्जाम पास कर ले तो उसे अगली बार से सीधे लिखित परीक्षा देने की इजाजात हो।
2. जो भी परीक्षार्थी लगातार दो बार इंटरव्यू दे उसे अगली बार से लिखित परीक्षा देने की बजाय सीधे इंटरव्यू के लिए बुलाया जाए।
3. जो भी दो बार से अधिक इंटरव्यू देने का बाद अपने सभी मौके गवां दे, उसे सांत्वना नौकरी दे दी जाए। अगर उस लेबल की नौकरी देना मुश्किल हो तो उसके थोड़ी कमतर ही सही नौकरी तो दो ही देनी चाहिए। क्योंकि एक दो नंबर से रुकने का मतलब सिर्फ इतना है कि हम उस साल परीक्षा देने वाले लोगों से थोड़ा पीछे हैं...लेकिन इसका ये भी मतलब है कि देश के कई लोगों खासकर यूपीएससी लेबल के नीचे की नौकरी कर रहे लोगों से बेहतर भी हैं।मेरा मानना है कि ये तकनीक सिर्फ यूपीएससी के लिए ही नहीं बल्कि हर लेबल पर इस्तेमाल होनी चाहिए, और ऐसे लोगों को उनकी योग्यता से थोड़ी नीचे ही सही नौकरी दे देनी चाहिए। इससे परीक्षा में बैठे लोगों को तो तसल्ली मिलेगी ही, सरकार को भी परीक्षा में अनावश्यक बोझ से थोड़ी राहत मिलेगी।अंत में कुछ बातें और...
1. देश के बहुत से प्रशासनिक अधिकारियों ने अपनी योग्यता से देश को गर्वान्वित किया है, मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री के तौर पर कैसे हैं इसका मुल्यांकन राजनीतिक होगा, लेकिन प्रशासनिक अधिकारी के तौर पर बेहद सफल रहे हैं औऱ मिसाल कायम की है।
2.इंटरव्यू में सफल लोग घिसे पिटे जवाब सिर्फ इसलिए देते हैं क्योंकि सवाल ही घिसे पिटे पूछे जाते हैं।
3. घुड़सवारी और टेबल मैनर के साथ ही घास छीलना भी सिखाया जाता है।
4. कालाहांडी ही क्यों, अगर आप प्रोजेक्ट देखेंगे तो पता चलेगा, बुन्देलखंड से लेकर दंतेबाड़ा तक के प्रोजक्ट दिए जाते हैं। आप कभी आईपीएस की ट्रेनिंग देख लीजिएगा, रोंगटे खड़े हो जाएंगे। उम्मीद है...आपके साथ ही सरकार भी थोड़ा बेहतर सोचेगी।