बुधवार, 19 अगस्त 2009

बहस के रास्ते खोल दिए जसवंत ने

देश बंटा, मसले हुए, मुल्क छूटा और दुनिया की तस्वीर में हिन्दु्स्तान और पाकिस्तान का अक्स भी शामिल हो गया। दोनो मुल्कों ने बंटवारे के लिए अपने अपने नायक और खलनायक भी तलाश लिए। जिन्ना भारत के लिए खलनायक बन गए और पाकिस्तान ने उन्हें अपना नायक घोषित कर दिया। सदी की सबसे बड़ी त्रासदी ने दुनिया का इतिहास दो मुल्कों के नजरिए में बांट दिया। चूंकि दोनो मु्ल्क अपने अपने इतिहास अपने नजरिए से लिख चुके थे सो बहस के रास्ते भी हमेशा के लिए बंद हो गए। लेकिन जसवंत के बहाने बहस के रास्ते फिर से खुले और आडवाणी के बाद दूसरी बड़ी कुर्बानी जसवंत को देनी पड़ी। जसवंत ने ये सवाल फिर से जिंदा कर दिया कि क्या विभाजन वाकई केवल जिन्ना की जिद्द का नतीजा था। या फिर नेहरु और पटेल भी इस बंटवारे के बराबर के जिम्मेदार थे। निश्चित तौर पर सवाल पेचीदा हैं। आरएसएस और बीजेपी नेहरु को विभाजन का दोषी ठहराती रही है, लेकिन उसे पटेल को कटघरे में खडा़ करने से एतराज है। ऐसा नहीं कि आरएसएस और बीजेपी ने अपने नजरिए से इतिहास में जाकर छेड़छाड़ नहीं की। उसने भी इतिहास को अपनी सहूलियत की हदों तक जाकर बदला है लेकिन इतिहास के सच का कसीलापन बीजेपी को बर्दाश्त नहीं। राम की राजनीति करने वाली बीजेपी जिन्ना के जिन्न से घबरा गई। फिलहाल जसवंत सिंह ने जिन्ना के बहाने बहस की जो गुंजाइश छोड़ी है उस पर बात करने की जरुरत है। ये जानने की जरुरत है कि कभी नमाज ना पढ़ने वाले जिन्ना को मजहबी देश की मांग के लिए किन हालातों में मजबूर होना पड़ा। साथ ही सवाल ये भी है कि विभाजन को लेकर अगर नेहरु के दिल में टीस थी तो उन्होने बंटवारे की लकीरों को मिटाने की कोशिश बाद के सालों में क्यों नहीं की। सच कड़वा है और जरुरत है सार्थक बहस की.

ग्लैमरस अपमान

शाहरुख एक्टर हैं तो अमर सिंह उनसे बड़े कलाकार है। एक पर्दे पर रुलाता और हंसाता है तो दूसरा राजनीति के सीने पर बरसों से मूंग दल रहा है। ड्रामेबाज दोनो हैं, फर्क बस इतना है कि एक ड्रामा करके पैसे बनाता है और दूसरा ड्रामा करके लोगों को बेवकूफ। शाहरुख अमेरिका से अपमानित होकर इंडिया पहुंचे तो उनका स्वागत किसी गोल्ड मेडल जीते खिलाड़ी की तरह हुआ। शायद ये पहली बार हुआ होगा कि अपमान को इस कदर सम्मान मिला हो। लेकिन ये बात राजनीति के मंच पर अमूमन अपमानित होने के आदी अमर सिंह को अच्छी नहीं लगी। अपमान से उनका तालुक्क पुराना है, लेकिन अपमान के सम्मान का स्वाद शाहरुख को जिस तरह चखने को मिला वो अमर बाबू को कभी नहीं मिला। दर्द दिल से निकला और जुबां पर आ गया और शाहरुख के अपमान को वो पब्लिसिटी स्टंट बता बैठे। अमर सिंह अपनी चुभने वाली शायरी से अक्सर लोगों को घायल करते रहे हैं। लेकिन उनकी जुबान की ये चुभन शाहरुख ने पहली बार महसूस की। शाहरुख ने भी अमर को खरी खोटी सुनाने में देर नहीं लगाई। अपमान पर अपमान का शो चलता रहा। चैनल वाले टीआरपी बटोरते रहे और दर्शक हमेशा की तरह बेवकूफ बनते रहे। इस चर्चा में ये सवाल कहीं गुम हो गया कि आम आदमी के अपमान पर इतना बवाल कभी क्यों नहीं हुआ। पुलिस से लेकर सरकारी मुलाजिमों की चौखट पर आम आदमी रोज अपमानित होता रहा। लेकिन इस अपमान पर टीवी के चौखटे पर कभी कोई बहस क्यों नहीं हुई। फिलहाल दौर ग्लैमर का है सो अपमान भी ग्लैमरस हो चुका है।