मेरी अधूरी कहानी
किसी कहानी का अधूरा रह जाना...आपके अंदर के अधूरेपन की तरह है...दरअसल मेरी कहानी दो किस्तों में आकर आज भी अधूरी पड़ी है...अब मुझे समझ में आता है कि कहानी किस्तों में भले छपतीं हो...लेकिन लिखी तो कतई नहीं जाती होगी (ऐसा मैं सोचता हूं)...कहानी के अंदाजे बयां के नाम पर मुझे कुमुद नागर जी याद आते हैं...कुछ कुछ निराला सा चेहरा...सफेद होती दाढ़ी...लंबा कद...और शानदार व्यक्तित्व...मुझे काफी दिनों बाद पता चला कि वो अमृतलाल नागर के पुत्र हैं...वो अक्सर हमें कहानी के बारे में बताया करते थे...उनके जिम्मे में वो काम था जो मेरे ख्याल से नामुमकिन सा था...वो हमें स्क्रिप्ट लिखना सिखाया करते थे...कहानी कैसे कही जाती है ये भी सिखाना उनके जिम्मे में था...जितना उनके करीब गया उतना ही बड़ा पाया...वो कई विधाओं में माहिर थे...थियेटर से लेकर पेटिंग तक...उन्होने कई सालों तक रेडियो और टेलीविजन में काम भी काम किया था...उनकी आवाज उनके आखिरी वक्त तक फंसने लगी थी...जब मैं दिल्ली में था...तब पता चला उनकी मौत हो गई है...टहलने के दौरान टेम्पो की टक्कर ने उनकी जिंदगी उनसे हमेशा के लिए छिन ली...मुझे उनका चेहरा आज भी याद है....मुझे अफसोस है कि मेरे पास इस ब्लॉग पर लगाने के लिए उनका कोई फोटो नहीं है...खैर बात कहानी की हो रही थी...
किसी कहानी का अधूरा रह जाना...आपके अंदर के अधूरेपन की तरह है...दरअसल मेरी कहानी दो किस्तों में आकर आज भी अधूरी पड़ी है...अब मुझे समझ में आता है कि कहानी किस्तों में भले छपतीं हो...लेकिन लिखी तो कतई नहीं जाती होगी (ऐसा मैं सोचता हूं)...कहानी के अंदाजे बयां के नाम पर मुझे कुमुद नागर जी याद आते हैं...कुछ कुछ निराला सा चेहरा...सफेद होती दाढ़ी...लंबा कद...और शानदार व्यक्तित्व...मुझे काफी दिनों बाद पता चला कि वो अमृतलाल नागर के पुत्र हैं...वो अक्सर हमें कहानी के बारे में बताया करते थे...उनके जिम्मे में वो काम था जो मेरे ख्याल से नामुमकिन सा था...वो हमें स्क्रिप्ट लिखना सिखाया करते थे...कहानी कैसे कही जाती है ये भी सिखाना उनके जिम्मे में था...जितना उनके करीब गया उतना ही बड़ा पाया...वो कई विधाओं में माहिर थे...थियेटर से लेकर पेटिंग तक...उन्होने कई सालों तक रेडियो और टेलीविजन में काम भी काम किया था...उनकी आवाज उनके आखिरी वक्त तक फंसने लगी थी...जब मैं दिल्ली में था...तब पता चला उनकी मौत हो गई है...टहलने के दौरान टेम्पो की टक्कर ने उनकी जिंदगी उनसे हमेशा के लिए छिन ली...मुझे उनका चेहरा आज भी याद है....मुझे अफसोस है कि मेरे पास इस ब्लॉग पर लगाने के लिए उनका कोई फोटो नहीं है...खैर बात कहानी की हो रही थी...
मानता हूं कि मैं गुनाहगार हूं उस कहानी का जो दो किस्तों में आकर भी अधूरी पड़ी है...मैं उसे पूरा कर पाऊं...मुझे नहीं लगता...क्योंकि कहानी कहने के लिए जिंदगी को महसूस करने का वक्त चाहिए...जो अब मुझसे छिन सा गया लगता है....सोचता हूं कुछ ऐसा कहूं जो सब सुने...ऐसा बोलूं कि खुद को भी अच्छा लगे...खुद को पात्र की तरह पेश करूं और असली सी कहानी कह डालूं...लेकिन इसके लिए आपकी आप से मुलाकात भी तो जरुरी है...वो भी अब नहीं हो पाती...फिर भी आस है लिख रहा हूं...खूब पढ़ने की ख्वाहिश है...अभी उम्र भी कोई ज्यादा नहीं हुई है...औऱ थकान भी नहीं है...इसलिए लिखने की आस है...फिलहाल तो आप इसे उस अधूरी कहानी को लेकर मेरा पश्चाताप कह सकते हैं...