बुधवार, 31 मार्च 2010

यूपी को बिहार से खतरा !

यूपी को लंबे अर्से से ये सहूलियत हासिल है कि वो बिहार की बदहाली में खुद की बदहाली छुपा सके। अब बिहार बदल रहा है या कहें वहां बदलाव की छटपटाहट दिखने लगी है। वहीं अभी यूपी से ऐसी कोई खबर नहीं है। सिवाए इसके की मायावती हजार हजार रुपए की नोटों की माला पहन रही हैं। लखनऊ पत्थर की मूरत में बदल रहा है। विकीपीडिया पर यूपी के बारे में तमाम आंकड़े पढ़कर कुछ खुशफहमी हो सकती है। जैसे कि यूपी देश में महाराष्ट्र के बाद दूसरी बड़ी आर्थिक ताकत है। खेती का हाल भी खुशनुमा दिखता है। यहां 70 फीसदी लोग खेती करते हैं और 46 फीसदी कमाई यूपी इसी खेती से करता है। छोटे उद्योगों के मामले में भी यूपी का दबदबा कायम है। लेकिन इन आंकड़ों के उलट हकीकत कुछ और है। जैसे पिछले दस सालों में यूपी का आर्थिक विकास देश में सबसे कम यानी मजह 4 फीसदी के आसपास रहा है। बिजली की आवाजाही ने उद्योगों पर बुरा असर डाला है। स्वास्थ्य सेवाओं का हाल बद से बदतर हुआ है। यूपी में केवल 29 प्रतिशत लोगों के पास पक्के घर हैं। 67 फीसदी लोग के यहां शौचालय नहीं है। केवल 9 फीसदी लोगों को यूपी में साफ पानी मयस्सर है। आबादी बढ़ाने के मामले में यूपी का योगदान 10 प्रमुख राज्यों में सबसे ज्यादा है। मौत की दर के मामले में भी यूपी सबसे बदतर हैं। गांव देहात के अस्पतालों में इलाज से ज्यादा भ्रष्टाचार है। पलायन बिहार की तरह यूपी की भी तकदीर का हिस्सा है। पश्चिमी यूपी को छोड़ दें (दिल्ली और हरियाणा की वजह से) तो बाकी यूपी पलायन के मामले में बिहार के आसपास नजर आता है। कानपुर में अब मैनचेस्टर वाली बात नहीं है। बुंदेलखंड यूपी का कालाहांडी बन चुका है। गन्ना किसान सरकार के फैसलों की मार झेल रहे हैं। लेकिन उद्योगों की चिंता से ज्यादा मायावती को मूर्तियों की चिंता है। बिहार तो लालू की छवि से काफी कुछ उबर चुका है लेकिन यूपी के माया और मुलायम की छवि से निकलने की कोई सूरत दूर दूर तक नजर नहीं आती। मायावती और मुलायम यूपी की राजनीति की विडंबना बन चुके हैं। दोनो दलों के एजेंडे का वास्ता विकास से कम जुमलों की राजनीति से ज्यादा है। दलितों को बहन जी के कार्यकाल से कितनी तरक्की हासिल हुई उसका किसी ताजा और पारदर्शी आंकड़ों में आना अभी है। यूपी अभी तक बिहार की बदहाली में अपनी फटीचरी छुपाता रहा है। अब ये भी सहुलियत छिनती दिख रही है।