शनिवार, 13 अक्तूबर 2007

सबकुछ बहा ले गई जो मौत

फिर शराब के जुबानी एक मौत की कहानी सुनने को मिली..सुबह दोस्त को फोन किया..तो पता चला की चाचा जी नहीं रहे..उनकी लाश उनके घर में पड़ी मिली..देखने वालों ने ये ही बताया कि ज्यादा शराब पीने की वजह से उनकी मौत हुई..इस मौत की खबर के साथ ही..ज़ेहन मे उनकी इकलौती बेटी का ख्याल आ गया..जिसे चाची दिल की किसी परेशानी के चलते..एक तरह से अनाथ छोड़कर दुनिया से हमेशा हमेशा के लिए पहले ही जा चुकी थीं..मेरा चाची जी के घर आना जाना कई बार हुआ..इस बीच जब भी चाचा मिले या तो शराब के नशे में मिले या फिर शराब ना मिल पाने के गम में..अपने पति की शराब की लत छुड़ाने के लिए.. डाक्टर से लेकर तांत्रिक तक.. सारे करम कर चुकी..चाची जी चाचा की आदत के आगे हार मान चुकी थीं..नवें दर्जे में पढ़ने वाली बेटी की जिंदगी और उसके भविष्य की चिंता अक्सर चाची जी के चेहरे पर शिकन बन छलक आया करती थी..जो करना था खुद करना था..छोटे से घर को संवारने से लेकर..बेटी को ज्यादा से ज्यादा पढ़ाने लिखाने तक..सबकुछ..चाचा जी की तनख्वाह..ऑफिस वाले उनके हाथों में ना देकर किसी तरह चाची तक पहुंचा दिया करते थे..ऐसे में घर तो संवर जाता था लेकिन अक्सर शराब के लिए पैसे मांगने पर चाचा और चाची में नोंकझोंक होती रहती थी..लेकिन बेटी की पढ़ाई और घर की जिम्मेदारियों के चलते चाची जी, चाचा की गालियां और कभी कभी मार चुपचाप सहन कर लिया करती थीं..पर एक दिन चाची भी नियति से हार गईं..दिल में जोर का दर्द हुआ..और अचानक उनकी आंखे हमेशा हमेशा के लिए बंद हो गईं..उनके जाने के बाद चाचा बेलगाम हो गए..शराब और भी ज्यादा होती गई..पास पड़ोस के लोग बताते हैं कि शराब के चलते मौत कई बार चाचा जी के करीब से होकर गुजरी..और आखिरकार मौत चाचा को उनके घर से दबोचकर अपने साथ ले गई..वो भी नशे की हालत में..देखते देखते..एक घर जहां मुझे चाची जी की वजह से एक उम्मीद दिखा करती थी..पहले अनाथ हुआ और आज चाचा जी के जाने के बाद हमेशा हमेशा के लिए खत्म हो गया..उनकी बेटी..चाची जी के जाने के बाद से ही..अपने नेकदिल रिश्तेदारों के यहां रह रही है..मैने उसे इस बीच जब भी देखा चुपचाप देखा..ना कोई शिकायत ना कोई ज़िद..मां के जाने के बाद से ही किसी अपने के दुनिया में ना रहने के एहसास..चाचा जी के जाने के बाद..शायद उसके दिल में कहीं गहरे से उतर चुका है

रविवार, 7 अक्तूबर 2007

एक नॉन सेन्स कविता

बहादुर,
बचपन से रहा
लेकिन घर की चौखट के भीतर..
बातों ही बातों में
क्रांति का बिगुल
कई बार फूंका..
लेकिन बिगुल की आवाज़
दोस्तों के कानों में चुटकुले बन कर
कहीं खो गई..
समाज बदलने भी कई बार निकला
लेकिन खुद के घर का
समाजशास्त्र बिगड़ गया
पत्रकार बना
तो एक दिन आर्थिक तंगी के चलते
खुद खबर बन गया..
राजनीति में करियर बनाने की सोची
तो मेरा शून्य क्रिमिनल रिकार्ड
आड़े आ गया
फिलहाल
भगवा ड्रेस में
अधर्म में धर्म की तलाश का दौर जारी है
बहादुर
बचपन से रहा
बस उसके एक सफल प्रयोग की तैयारी है

मासूम आंखें

जी भर रो लेने के बाद
बच्चों की मासूम
आंखें..
पहले से कहीं ज्यादा
चमकदार हो जाती हैं...
उन्हें
नहीं आती
बड़ों की तरह
आंसुओं को छुपाने की
बहादुरी..
वो नहीं जानती
बड़ों की तरह
आंखों की बनावटी भंगिमाएं..
नफरतों
के पैमानों से
अन्जान होती हैं
बच्चों की आंखें..
इसलिए
शायद चमकदार होती हैं
बच्चों की आंखें..

मंगलवार, 2 अक्तूबर 2007

ठगी...अपराध नहीं

ठगी
अब कोई अपराध नहीं..
बदल चुकी है
अब ठगी की परिभाषा..
लोगों के सुखों में अब शामिल है
ठगे जाने का सुख..
बाजार के रास्तों पर हैं.
अब ठगों की
नई नई स्कीमें..
बच्चों की किताबों से लेकर
मरीजों की
जिंदगी के सौदों के बीच
हर जगह है
ठगी का बाजार
मजदूरों के पसीने
से लेकर
किसानों की उम्मीदों
तक हर जगह
है
ठगी का व्यापार
शायद
इसलिए नहीं है
ठगी कोई
अपराध

सोमवार, 1 अक्तूबर 2007

ब्लॉग..पर कविता

कोशिशों की
छोटी छोटी कहानियों
से बनी
एक लंबी कहानी हैं
ये ब्लॉग..
इन कहानियों में
कहीं रवीश का कस्बा है
तो कहीं
प्रियदर्शन की बातें हैं...
कहीं समीर लाल हैं
तो कहीं वाह वाह करते
संजीव तिवारी के
अल्फाज़ हैं...
राजेश रोशन के सपनों
कि कहानी हैं
ये ब्लॉग....
वाकई
कोशिशों की
छोटी छोटी कहानियों
से बनी
एक लंबी कहानी हैं
ये ब्लॉग....
रितेश गुप्ता की
भावनाएं
हैं यहां....
रवीन्द्र प्रधान के
लफ्ज़ों की मिठास
है यहां...
ढाई आखर की जुबानी
है यहां...
कोशिशों की
छोटी छोटी कहानियों
से बनी
एक लंबी कहानी हैं
ये ब्लॉग..