बुधवार, 15 अक्तूबर 2008

सबक लेने का समय


ग्लोबलाइजेशन के फायदे के बाद अब दौर उसके साइड इफेक्ट का है...मंदी की मार में हजारों नौकरियां बेरोजगारी में बदल चुकी है..जिनकी नौकरी गई है वो सड़कों पर हैं...और अपनी नौकरी वापस पाने के लिए नारे लगा रहे हैं...पैसे की बाढ़ के बाद अब जिंदगी कर्ज और दुविधा के कीचड़ से सनी दिख रही है...ये वो दौर है जिसका डर पिछले दिनो किसी को नहीं था...जिनके पास नौकरियां थी... वो ऐश की जिंदगी जी रहे थे...क्रेडिट कार्ड धड़ल्ले से बंटे जा रहे थे...और शहरों की चमकदमक के बीच अस्सी फीसदी देश की फिक्र भुला दी गई थी...जेट के कर्मचारियों के सपनों के साथ खिलवाड़ हुआ...अभी और भी छंटनी की बातें हो रही हैं...कहा जा रहा है कि भारी पैमाने पर कर्मचारियों को निकाला जाएगा.. आईटी सेक्टर से बैंकिंग सेक्टर तक पर छंटनी की गाज गिर सकती है...ऐसे में हर किसी का सहम जाना लाजमी है....आजकल जो हो रहा है...उससे सभी को सहानुभूति है...लेकिन इस डर में ऐसा काफी कुछ है.. जो हमें संभलने की सीख देता है...दरअसल ग्लोबलाइजेश के साथ आए पूंजीवाद ने अभी तक हमें जिंदगी के केवल वो पहलू दिखाए जिनमें चमक थी.. तड़क भड़क थी...पूंजीवाद के नशे ने शहरों को गांवो से दूर कर दिया...अपनी लाखों की नौकरी में किसी को कभी विदर्भ और बुंदेलखण्ड में मरते किसान नजर नहीं आए... पता ही नहीं चला की यूपी और बिहार के पिछड़ेपन में रोज कितने लोग भूखे प्यासे मरते रहे हैं... ये सब तब हो रहा था...जब किसान अपनी मेहनत के सहारे देश की अर्थव्यवस्था के लिए अपना पसीना बहा रहे थे...लेकिन जब मंदी की मार पड़ी... और बड़े बड़े संस्थानों में काम कर रहे लोगों की नौकरियां जाने लगीं तो...तो उन्हें भी देश की सरकार याद आने लगी...वित्तमंत्री याद आने लगे...और भारत की अर्थव्यवस्था के भविष्य की पड़ताल होने लगी...मंदी की मार दुनिया पर पहली बार नहीं पड़ी...लेकिन इस बार मंदी के झटके यहां भी महसूस हुए हैं... ऐसे में वक्त सबक लेने का है...ये तय करने का है कि हर नागरिक की समाजिक और निजी सुरक्षा को कैसे सुनिश्चित किया जाए...इसके लिए पहल का ये सबसे बेहतर समय है...खुद के लिए भी और सरकार के लिए भी...