मंगलवार, 4 मई 2010

फ्लैश के उस पार


कैमरे का फ्लैश चमकने से पहले,
रेडी वन टू थ्री कहते ही
कितनों के चेहरे पर आई होगी
जबरदस्ती की मुस्कुराहट ।
कैमरे ने बड़े सलीके से खींच लिए होंगे
होठों के वो बनावटी एक्सप्रेशन।
कैमरों में बड़ी चालाकी से छिप गई होगी
जिंदगी से जूझने की जद्दोजहद,
मां की बीमारी की परेशानी,
और रोज रोज बनते बिगड़ते रिश्तों की कहानी।
तस्वीरों के ऐसे आधे अधूरे सच
फोटो की शक्ल में किसी के फेसबुक
तो किसी के ब्लॉग पर नत्थी हैं।
आधी अधूरी तस्वीरों की तमाम दस्तकें
फ्रैण्डस् रिक्वेस्ट की शक्ल में सामने हैं
एक भ्रम और है जो उसे एक्सेप्ट कर रहा है।
(04 april 2010)

जिंदगी को कैसे देखें...


(कुछ बातें दिल को छू जाती हैं...१७ दिसम्बर २००८ को दैनिक भास्कर में छपे सम्पादकीय में विचारक स्टीफन आर कवी का इंटरव्यू छपा था...उन्होने कुछ ऐसी बातें कही... जिसने मुझे काफी प्रभावित किया...उनके इंटरव्यू के कुछ अंश यहां कोड कर रहा हूं...)


सवाल...जिंदगी को कैसे देखें...

स्टीफन...शरीर के बारे में सोचिए कि आपको दिल का दौरा पड़ चुका है...अब उसी हिसाब से खानपान और जीवनचर्या तय करें...दिमाग के बारे में सोचिए कि आपकी आधी पेशेवर जिंदगी सिर्फ दो साल है...इसलिए इसी हिसाब से तैयारी करें...दिल के बारे में ये मानिए कि आपकी हर बात दूसरे तक पहुंचती है...लोग आपकी बात छिपकर सुन सकते हैं...और उसी इसी हिसाब से बोलें...जहां तक भावना का सवाल है...ये सोचिए कि आपका ऊपरवाले के साथ हर तीन महिने में सीधा साक्षात्कार होता है...इसी हिसाब से जीवन की दिशा तय करें...