बुधवार, 5 मार्च 2008

गिरेवान में झांकने का वक्त

अभी हाल में एक अखबार के सम्पादकीय पेज पर..इलेक्ट्रानिक मीडिया के बारे में मशहूर पत्रकार नाइजल रीस के विचार छपे थे...नाइजल ने टीवी पत्रकारिता की धज्जियां उड़ाते हुए कहा था कि...दुनिया का सबसे आसान काम है टेलीविजन पत्रकार होना...उन्होने आगे कहा था कि...इस पत्रकारिता में आपको कुछ नहीं करना होता...सब पहले से तय होता है...आप बस खाली जगह भरते हो...अखबार ने नाइजल के हवाले से आगे लिखा था कि...टेलीविजन पत्रकार के पास बस चार सवाल होते हैं और वो उन्हें उसी क्रम में दोहराता है...मसलन घटना का विवरण क्या है...लोग क्या महसूस कर रहे हैं..अधिकारियों का क्या कहना है...और ये घटना इसी समय क्यों हुई...नाइजल ने ये बातें भले इलेकट्रानिक मीडिया के व्यवहारिक पक्ष को ध्यान में रख कर कही हों....लेकिन खबरिया चैनलों की कुछ इसी तरह की खिल्ली आपको चाय की दुकानों से लेकर पान की गुमटियों तक सुनने को मिल जाएगी...मैं खुद पिछले तीन साल से इलेक्ट्रानिक मीडिया में काम कर रहा हूं..इस बीच मैने वो खुशी कभी महसूस नहीं की जिसकी उम्मीद लेकर इस क्षेत्र में मैं आया था...ज्यादात्तर न्यूज चैनल के दफ्तरों की कहानी एक सी है...अपनी गणित बैठाने और दूसरों को कोसने की बैद्धिकत्ता का नासूर...इलेक्ट्रानिक मीडिया को हर स्तर पर खोखला कर रहा है...जो बेहतर कर भी रहे हैं...उनके रोमांस के फर्जी किस्सों की ब्रेकिंग न्यूज उड़ाकर...उनकी छवि बिगाड़ने की कोशिश करने वाले पत्रकारों की तदात कम नहीं है....ऐसे में नाइजल बिल्कुल ठीक नज़र आते हैं...मैने तो अभी तक टीवी पत्रकारो को खबरों पर संजीदा होने से ज्यादा...( जिनसे मेरा पाला पड़ा है )..मंहगे मोबाइल पर भोकाल टाइट करने की लाचार कोशिश करते ही देखा है...डेस्क पर खुद पत्रकारों ( मैं कई लोगों के आगे पत्रकार लगाना नहीं चाहता लेकिन और कोई शब्द भी नहीं है मेरे पास उनके लिए ) में कम्यूनिकेशन गैप ने माहौल को बिगाड़ा है...अपनी नजरों में हर शख्स यहां सिकन्दर से कम नहीं...अजीब सी आत्ममुग्धता में जीने की...दिखावटी शैली ने...उनके अंदर के पत्रकार की संभावना का भी गला घोंट दिया है...अगर बाजारु भाषा में कहे तो पत्रकारिता एक प्रोफेशन बन चुकी है...कम से कम वो मिशन तो नहीं रही ...जहां आंखे खुली रखकर गलत और सही को पहचानने की सीख दी जाती थी...