मैने निराशा में जीना सीखा है,निराशा में भी कर्तव्यपालन सीखा है,मैं भाग्य से बंधा हुआ नहीं हूं...राममनोहर लोहिया
रविवार, 30 दिसंबर 2007
पत्रकारिता
जो सोचता हूं,वो कर नहीं पा रहा जो कर रहा हूं,उसे समझ नहीं पा रहा जो समझ पा रहा हूं वो कोई तसल्ली देने वाली चीज़ हर्गिज नहीं.. (पत्रकारिता के बारे में...दीपक)
2 टिप्पणियां:
सही कहा आपने...
kaya badhia kavita hai
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