मैने निराशा में जीना सीखा है,निराशा में भी कर्तव्यपालन सीखा है,मैं भाग्य से बंधा हुआ नहीं हूं...राममनोहर लोहिया
सोमवार, 26 मई 2008
हिन्दी ब्लॉग की हत्या पर दो मिनट का मौन
यशवंत जी ने अपने ब्लॉग पर जिस भाषा का इस्तेमाल किया...वो भले उनकी अभिव्यक्ति का तरीका हो...लेकिन उससे हिन्दी ब्लॉग को गहरा धक्का लगा है...यशवंत जी से मै कभी नहीं मिला...ना तो अविनाश जी से मेरा कोई परिचय है...दोनो को मैने ब्लॉग के जरिए जाना..पढ़ा और जी भर के कमेंन्ट किए...लेकिन हाल में यशवंत जी ने जिन अपशब्दों के साथ अपनी भड़ास निकाली..उससे हिन्दी ब्लॉग की दुनिया को काफी नुकसान पहुंचा है...इस ब्लॉग ने साबित कर दिया कि...केवल चार पांच बढ़िया लाइने लिखने से आप महान नहीं बन जाते...गुस्से में आप कितना विवेक से काम लेते हैं... ये बहुत कुछ आपके व्यक्तित्व पर निर्भर करता है.. .यशवंत जी ने साबित कर दिया की ब्लॉग जगत की सेवा की उनकी कोशिश ईमानदार तो कतई नहीं है...गुस्से में अपशब्दों का इस्तेमाल तो अनपढ़ भी करता है...लेकिन थोडा पढ़े लिखे लोग ऐसा करने लगते हैं तो अफसोस होता है...मैं यशवंत जी इतना ही कह सकता हूं कि अपने लिखे को दोबारा पढ़े...सोचें...उन्हे इस वक्त सोच समझ कर लिखने की जरुरत है... माना कि ब्लॉग उनका है...अभिव्यक्ति की आजादी पर उनका भी हक है...लेकिन सार्वजनिक मंचो से गाली गलौज और रंगभेदी टिप्पणी करना किसी को भी शोभा नहीं देता..फिलहात तो हिन्दी ब्लॉग की हत्या की उनकी इस कोशिश पर हम सब दो मिनट का मौन रख सकते हैं...
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3 टिप्पणियां:
सुबोध भाइ ठिक कहा ..दो मिनट का मौन कम पड जाएगा..किसी ने कहा था कि ये व्लाग जगत काजल की काली कोठरी है ..जरा मोहल्ले पर देखिये किसी खडूस घटोत्कच ने क्या लिखा है सब पागल हो गये है ..
आप ने ठीक कहा. हिन्दी ब्लाग जगत को इतना नीचे गिराना अच्छी बात नहीं है. दोनों पक्षों को संयम बरतना चाहिए.
हम तो सदा के लिये मौन रहने की सोच रहे है
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