मैने निराशा में जीना सीखा है,निराशा में भी कर्तव्यपालन सीखा है,मैं भाग्य से बंधा हुआ नहीं हूं...राममनोहर लोहिया
शनिवार, 27 दिसंबर 2008
दिल से...रोज पढ़ें...
(दरअसल कुछ बातें दिल को छू जाती हैं...१७ दिसम्बर को दैनिक भास्कर में छपे सम्पादकीय में जाने पहचाने विचारक स्टीफन आर कवी का इंटरव्यू छपा था...उन्होने कुछ ऐसी बातें कही... जिसने मुझे काफी प्रभावित किया...उनके इंटरव्यू के कुछ अंश यहां कोड कर रहा हूं...)
सवाल...जिंदगी को कैसे देखें....
स्टीफन...
शरीर के बारे में सोचिए कि आपको दिल का दौरा पड़ चुका है...अब उसी हिसाब से खानपान और जीवनचर्या तय करें...
दिमाग के बारे में सोचिए कि आपकी आधी पेशेवर जिंदगी सिर्फ दो साल है...इसलिए इसी हिसाब से तैयारी करें...दिल के बारे में ये मानिए कि आपकी हर बात दूसरे तक पहुंचती है...लोग आपकी बात छिपकर सुन सकते हैं...और उसी इसी हिसाब से बोलें...
जहां तक भावना का सवाल है...ये सोचिए कि आपका ऊपरवाले के साथ हर तीन महिने में सीधा साक्षात्कार होता है...इसी हिसाब से जीवन की दिशा तय करें...
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1 टिप्पणी:
सुबोध जी
बहुत अच्छा या यू कहे बेमिसाल है... आपकी सोच.. जिंदगी को कैसे देखें...का कोड किया आपका लेख पढ़ा ... आपका अंदाज बहुत अच्छा है...
shalini
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