मंगलवार, 30 मार्च 2010

गरियाना तो सबको आता है पर...


बड़बड़ाते झुंझलाते और काफी हद तक गरियाते लोगों से घिरा हूं। समझना मुश्किल है क्या बोलूं क्या कहूं। बस हां में हां मिलाकर काम चला लेता हूं। ना सहमति ना असहमति। सबकी अपनी शिकायते हैं सबकी अपनी कहानियां हैं। दरअसल दिक्कतें कई हैं। सब अपनी नजरों में सिकंदर हैं। सबके अपने पूर्वाग्रह हैं। लेकिन मुझे आज तक समझ में नहीं आया कि कोई कैसे तय कर सकता है कि वो इस सदी का सबसे बड़ा राइटर है। कोई कैसे इस गुमान में जी लेता है कि वो बोलेगा और कई सदियों का कहा हमेशा के लिए मिट जाएगा। या फिर वो लिखेगा और पुराना लिखा सबकुछ मिटा देगा। क्यों लोग आसपास की दुनिया को देखना नहीं चाहते अपनी कमीज पर लगे दागों को धोने की कोशिश करना नहीं चाहते। शिकायतें यहीं से शुरु होती हैं। काबिलियत बोले जाने की मोहताज नहीं होती। उसका खुद का चेहरा होता है। ठीक वैसे जैसे ए आर रहमान की काबलियत धुनों में सुनी जा सकती है। सचिन का एक्सीलेंस उनके शॉट्स में बखूबी छलक आता है। दरअसल सीखने के लिए बहुत कुछ है और करने को बहुत स्पेस है। जरुरत है अपने दिमाग में स्पेस बनाने की। समाचार माध्यमों के साथ जो हो रहा है वो दिमाग में उस स्पेस की कमी का नतीजा है। जो दिमाग में विचारों का स्पेस बना लेते हैं वो इस भेड़चाल में भी दिल्ली का लापतागंज खोज लेते हैं। कैमरे आंख की तरह इस्तेमाल हों और माइक किसी की आवाज की तरह तो यकीन जानिए न्यूज में बहुत कुछ कहने सुनने के लिए होगा। वरना कॉमेडी सर्कस और रियलटी की उधारी से न्यूज चैनलों की दुकानें सजती रहेंगी।

5 टिप्‍पणियां:

अजित गुप्ता का कोना ने कहा…

सटीक लिखा है। समुद्र की एक बूंद में सम्‍पूर्ण समुद्र के पानी के गुण हो सकते है लेकिन वह स्‍वयं में समुद्र नहीं। लेकिन लोग यदि गलतफहमी में जीते हैं तो उसका इलाज भी तो नहीं। बस लम्‍बी लकीरे खींचते जाइए स्‍वयं समझ आने लगेगा।

Unknown ने कहा…

Subodh bhai, pahle to bahut bhaut mubarakbad is lekh ke liye...

aur ek baad yaad ayi to yahan zikra karna chahta hoon..
mujhe yaad jub hum delhi me the ek baar kisi news Chanel par ek news dekhkar mujhe bahut afsos hua tha.Mujhe wo news yaad nahi lekin Yaad hai apne kaha tha ki is sabke ke bich kuch ache log bhi abhi hain aur roz judte jaa rahe hain Journalism ke sath aur koi bhi roz jhooth ya kuch bhi dikhakar sachi news ko badal nahi sakta aur jhuthi baaton ko baar baar dikhakar sachi nahi bana sakta ...

Unknown ने कहा…

Subodh bhai, pahle to bahut bhaut mubarakbad is lekh ke liye...

aur ek baad yaad ayi to yahan zikra karna chahta hoon..
mujhe yaad jub hum delhi me the ek baar kisi news Chanel par ek news dekhkar mujhe bahut afsos hua tha.Mujhe wo news yaad nahi lekin Yaad hai apne kaha tha ki is sabke ke bich kuch ache log bhi abhi hain aur roz judte jaa rahe hain Journalism ke sath aur koi bhi roz jhooth ya kuch bhi dikhakar sachi news ko badal nahi sakta aur jhuthi baaton ko baar baar dikhakar sachi nahi bana sakta ...

सुशील छौक्कर ने कहा…

सोलह आने सच्ची बात।

प्रभात रंजन ने कहा…

jab ki tere siwa nahin koi maujud
fir ye hungama aye khuda kya hai.