बुधवार, 9 जून 2010

कल ये कहानी फिर छेड़ेंगे


बंद करो अब शोर लगती हैं तुम्हारी ये खबरें
जान चुका हूं तुम्हारे पुते चेहरों पर झल्लाहट का सारा सच
मुझे मालूम है तुम्हारी नेताओं से सांठगांठ की हकीकत
मुझे ये भी पता है कि एक हारी लड़ाई लड़ रहे हो तुम सब
खुद खरोच रहे हो अपने वजूद को अपने नाखूनों से
पैसों की तहों में दब चुकी है तुम्हारी सोच और तुम्हारा प्रोफेशन
मुझे पता है तुम खुद को सुनाने के लिए चीखते हो
मुझे ये भी पता है कि तुम खुद को बचाने के लिए चीखते हो
लेकिन दोस्त तुम्हारी ये चीख
अब दिमाग में हलचल पैदा नहीं करती
सिर्फ और सिर्फ झल्लाहट पैदा करती है
और थोड़ी बहुत तरस पैदा करती है तुम्हारे लिए
तुम्हारे पेशे के लिए