मैने निराशा में जीना सीखा है,निराशा में भी कर्तव्यपालन सीखा है,मैं भाग्य से बंधा हुआ नहीं हूं...राममनोहर लोहिया
मंगलवार, 10 जुलाई 2007
पैसा और जिंदगी
पहले जेब खाली थी। तब सोचता था कि पैसा आ जाए। थोड़ा पैसा आया, तो लगा और आ जाए। फिर एक दिन खूब पैसा आया, तो एहसास हुआ कि जिंदगी अकेली हो गई, अब जिंदगी खाली है, जिसे पैसे से भरना आसान नहीं है।
जब तक "िजन्दगी और पैसा" रहेगा ऐसा ही होता रहेगा अब "िजन्दगी मे पैसे "को लाने की ज़रूरत है।िबलकुल वैसे ही जैसे कभी "घर और फ़र्इज़,कूलर" हुआ करता था अब "घर मे फ़र्इज़ सूलर" होते है|
i liked whatever you have written....its nice...every thing is fine and fair i think... because every thing has its own value...na . you have to decide what you are disiring for...ok it is not to worry....alot every thing will be yours but you have to work hard and think wide ok..
3 टिप्पणियां:
जब दाँत थे तो चने नही थे, चने आये तो दाँत चले गये....
जब तक "िजन्दगी और पैसा" रहेगा ऐसा ही होता रहेगा अब "िजन्दगी मे पैसे "को लाने की ज़रूरत है।िबलकुल वैसे ही जैसे कभी "घर और फ़र्इज़,कूलर" हुआ करता था अब "घर मे फ़र्इज़ सूलर" होते है|
i liked whatever you have written....its nice...every thing is fine and fair i think... because every thing has its own value...na . you have to decide what you are disiring for...ok it is not to worry....alot every thing will be yours but you have to work hard and think wide ok..
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