मैने निराशा में जीना सीखा है,निराशा में भी कर्तव्यपालन सीखा है,मैं भाग्य से बंधा हुआ नहीं हूं...राममनोहर लोहिया
रविवार, 5 अगस्त 2007
कन्हैया की कहानी part 2
तभी दूर एक मोटा सा आदमी उसकी ओर आता दिखा। वो पास आकर पान की पीक थूकते हुए बोला क्यों बे मजूरी करेगा.ये सुनकर जैसे कन्हैया को बड़ा सहारा मिला । हां साहब ऐ ही खातिर आये हैं..अच्छा देर शाम काम करना होगा और मजूरी मिलेगी दिन के तीस रुपये...कम है साहब.. कन्हैया गिड़गिड़ाया..आधे दिन के पूरे लेगा क्या..मोटे आदमी ने हिकारत भरी आवाज में कन्हैया की ओर देखते कहा..देख चलना है तो चल नहीं तो बहुत पड़े हैं तेरे जैसे..इतना कह कर वो मोटा आदमी वहां से चल पड़ा..लेकिन तभी कन्हैया लगभग पीछा करते हुये उस मोटे आदमी के करीब आकर बोला..साहब कहां चलना है..कुटिल मुस्कान के साथ कन्हैया की ओर देखते हुये मोटे आदमी ने उसे ट्राली में बैठने का इशारा किया.वहां से कन्हैया को एक ऐसी जगह ले जाया गया जहां बड़े पैमाने पर काम चल रहा था। कही बड़ी बड़ी दीवारें बन रहीं थीं तो कहीं असमान सी ऊंची इमारत बनाई जा रही थी..तभी एक अनजाने से आदमी ने कन्हैया को फावड़ा पकड़ाते हूये कहा कि कहा कि सुनो जहां वो गढ्ढा खोदा जा रहा है वहां जाकर साहब से पूछ लो क्या करना है और हां अगर बीड़ी वीड़ी सुलगी तो सोच लेना कुत्ते की तरह भगा दूंगा समझे...इतने कड़ुवे बोल कन्हैया ने कभी नहीं सुने थे लेकिन अपने सपनों और वसुधा के चेहरे के एक मुस्कुराहट देखने के लिए कन्हैया अपमान का ये घूंट पी गया । गढ्ढे के पास खड़ा आदमी मजदूरों से गढ्ढा खुदवा रहा था..गढ्ढे में कुछ मजदूर थे जिन्हे बाहर आने का इशारा कर उसने कन्हैया को गढ्ढा में उतरने को कहा..कहे के मुताबिक कन्हैया उस गढ्ढे में उतर गया। काम मिलने के उत्साह के आगे मानों उसकी थकान कहीं गुम हो चुकी थी। मेहनत से कन्हैया ने कभी मुंह नहीं छुपाया। चारों ओर सभी काम कर रहे थे कुछ नया बना रहे थे। गढ्ढे की गहराई करीब सात फीट हो चुकी थी। काम ज्यादा नहीं बचा था लेकिन कन्हैया का उत्साह बदस्तूर बना हुआ था। उसे पसीने की बूंद पोछते कभी वसुधा याद आती तो कभी बच्चे की किलकारियां उसके कानों में सुनाई देतीं। लेकिन तभी अंदर और आसपास की जमीन ने धंसना शुरु कर दिया। वहां खड़े मजदूर खतरे को भांपकर वहां सेजल्दी दूसरी ओर दौड़े..किसी को गढ्ढे में मौजूद कन्हैया की चिल्लाने की आवाज नहीं सुनाई दी..थोड़ी देर में मिट्टी के धंसने के साथ कन्हैया भी उसी में हमेशा के लिए दफन हो गया..हल्ला मचा..लेकिन तबतक सबकुछ खत्म हो चुका था..बताते हैं कि उस हादसे की ख़बर किसी अखबार में भी नहीं आयी.. जिन्हें इस बारे में पता था भी उनके मुंह भी चंद पैसों ने बंद कर दिये ...फिलहाल कन्हैया की गुमशुदगी की रिपोर्ट आज भी एक थाने के रजिस्टर में दर्ज है.....
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