सोमवार, 17 सितंबर 2007

योग कहीं भी कभी भी

एक लंबी सांस लीजिए
थोड़ा धैर्य रखिए,
दूसरे के अपशब्दों को
उसके संस्कारों का
छिछलापन मानकर
भूल जाईये,
उनके बारे में सोचिए
जो आपको पसंद हैं,
उनकी खुशी को
महसूस करिए
जिनकी सरलता से
आपको खुशी मिलती हो,
अब सांस छोड़ दीजिए
और
खुद के अंदर छिपी
अथाह शांति को
महसूस कीजिए

4 टिप्‍पणियां:

Sanjay Tiwari ने कहा…

यह तो दिव्य योग है.

Rajesh Roshan ने कहा…

शानदार

Udan Tashtari ने कहा…

अह्हा!! परम आनन्दम!!!

Reetesh Gupta ने कहा…

बहुत अच्छे छा गये गुरू ...मजा आ गया

बधाई