लोग कहते हैं कि अभी
मैं नासमझ हूं..
दुनिया देखने की
समझ नहीं हैं मुझमें...
लेकिन
मै भांप लेता हूं
लोगों के गलत
इरादे..
वायदों से आती
झूठ की बू
को पहचानता हूं मैं...
बाज़ार के समानों
में देख लेता हूं
फायदों के पनपते
अमानवीय रिश्ते को ..
पल पल मरती
अभिव्यक्ति के बीच
एक कोने की तलाश में
दिख जाते हैं
मुझे लोग
लेकिन फिर भी
लोग कहते हैं...
मैं नासमझ हूं
क्योंकि
मैं एक
आम आदमी हूं...
2 टिप्पणियां:
सच कह रहे हैं. लोगों में इतनी समझ कहाँ. :)
सही है, जारी रहो. बधाई.
इस आम आदमी के भाव से हमे निकलना होगा
तुम्हारा उभरना सत्ताधीशों को कभी नहीं भायेगा
बनकर निडर इनसे निपटना होगा
यह रास्ता हमे स्वयं ही गढ़ना होगा
सुंदर मन की भावनायें है ...ऎसे ही लिखते रहें
बधाई
एक टिप्पणी भेजें