सोमवार, 19 जनवरी 2009

मेरा कबूलनामा दिल से 8



खूबसूरत दुनिया के ख्याल
खूबसूरत ख्यालों से कहीं बेहतर होती हैं
खूबसूरत कोशिशें
मैं अक्सर खूबसूरत ख्यालों में जीता हूं
उसी के आंचल में सपने पालता हूं
भूल जाता हूं कि
खूबसूरत कोशिशों के बगैर
खूबसूरत ख्यालों का कोई मतलब नहीं
मुझे ये भी पता है कि
ख्यालों की वो खूबसूरत दुनिया
हर आंखों में बसती है
लेकिन उस तक पहुंचने का रास्ता
बहुत पथरीला है
शायद कहा भी इसीलिए गया है कि
सपने वो नहीं होते
जो बंद आंखों से देखे जाते हैं
सपने वो होते हैं
जो आपको सोने नहीं देते

( मेरी उम्र अभी तीस होने में काफी वक्त है...लेकिन जिन सपनों में मैं जीता हूं...वो थोड़े बड़े और थोड़े हट कर हैं..पैसे का लोभ अभी तक नहीं था...लेकिन अब थोड़ा थोड़ा होने लगा है...बाजार से चिढ़ थी...अब बाजार में ही रह रहा हूं..या कहूं रहने की आदत डाल रहा हूं...दो वक्त की रोटी के लिए जो नौकरी कर रहा हूं उसका कभी सपना देखा करता था...लेकिन अब ये सपना काफी डरावना हो गया है...मुझे लगता है कि सपनों और हकीकत के बीच फासला हमेशा से रहा है...जो इस फासले की खाई को पाट लेते हैं...उन्हें सपनों की दुनिया हासिल हो जाती है...और बाकी सपने पालने की गुस्ताखी करते रह जाते हैं...मैं भी दूसरी श्रेणी में आता हूं...सपने अभी भी जिंदा है इस बात का सूकून है...लेकिन इस बात का मलाल भी ज्यादा है कि कोशिशों को लेकर मैं कभी ईमानदार नहीं रहा..सच कहूं तो मैं व्यक्तिगत स्तर पर काफी लापरवाह पर्सनालिटी हूं...सुस्त कामचोर..काम को टालने वाला...लेकिन ये भी सच है...चमक्तार की उम्मीद नहीं करता...इसलिए ज्यादा मुगालते में नहीं जीता.. शायद इसलिए खुद को झकझोरने के लिए ये कविता लिख डाली...उम्मीद करता हूं कि जब अगली कविता लिखूं तो बातें खूबसूरत कोशिशों की हों...और जिक्र खूबसूरत कोशिशों के पथरीले रास्तों का हो.. ताकि मेरा सर कम से कम अपनी नजरों में ना झुके...)

4 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

सुबोध जी...

बहुत अच्छी कोशिश है..बहुत कम ही लोग ऐसे होते है..जो अपने आप को खुद इस तरह रोज़ टाइम देते हो ..मतलब अपने आपको इतनी बारीकी से जानकर.. अपने आपको सही गलत के बीच खड़ा कर पाते हो...बहुत अच्छा लगा..आपका लेख पढ़कर ...सपने..खयाल और कोशिशे...सब एक दूसरे से होकर ही गुजरती है...तो बस कर्म करे..और आपका सपना आपकी मंजिल खुद आपके कदम चूंमेगी...ये मेरा मानना है..बस जरूरत है..लगे रहने की..बहुत अच्छा...हमेशा की तरह आपने उन्दा लिखा है..

आलोक वर्मा ने कहा…

बेहतर

आलोक वर्मा ने कहा…

....सुबोध, वैसे तो तुम्हें जानते हुए एक अर्सा हो गया।...लेकिन तुम्हें पढ़ते हुए लगता है कि तुम्हें पहचानने का सिलसिला अब शुरू हुआ है।....तुम्हारी जिन्दगी के कुछ पन्नों में स्याही भरते मैनें देखा है, सो बार-बार और करीब से जानने समझने तुम्हारे कबूलनामे में पहुंच जाता हूं।...फोन पर तुमसे बात हो न हो लेकिन उम्मीद से हर रोज बात होती है।....सिलसिला जारी रखना,...तुम्हारी कहानी जमाना गौर से सुन रहा है।
----तुम्हारा आलोक.

आलोक वर्मा ने कहा…

....सुबोध, वैसे तो तुम्हें जानते हुए एक अर्सा हो गया।...लेकिन तुम्हें पढ़ते हुए लगता है कि तुम्हें पहचानने का सिलसिला अब शुरू हुआ है।....तुम्हारी जिन्दगी के कुछ पन्नों में स्याही भरते मैनें देखा है, सो बार-बार और करीब से जानने समझने तुम्हारे कबूलनामे में पहुंच जाता हूं।...फोन पर तुमसे बात हो न हो लेकिन उम्मीद से हर रोज बात होती है।....सिलसिला जारी रखना,...तुम्हारी कहानी जमाना गौर से सुन रहा है।
----तुम्हारा आलोक.